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________________ मानव-जीवन अनेकानेक समस्याओं से युक्त है। ये समस्याएँ कभी अंतरंग और कभी बहिरंग परिवेश में उत्पन्न असन्तुलन के कारण होती हैं तथा जीवन में अनेक द्वंद्वों एवं संघर्षों को जन्म देती हैं, जैसे आन्तरिक मनोवृत्तियों का संघर्ष, बाह्य वातावरण में होने वाला संघर्ष तथा आन्तरिक इच्छाओं एवं बाह्य परिस्थितियों के मध्य का संघर्ष । इन संघर्षों से व्यक्ति दुःखी और सन्तप्त होकर जीवन व्यतीत करता रहता है। समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए उसे सम्यक् सूत्र (Right Formula) एवं सम्यक् पद्धति (Right Approach) का उपयोग करना आवश्यक है और तभी जीवन सुख, शान्ति एवं आनन्दमय बन सकता है। जैनआचारमीमांसा में विद्यमान सूत्रों या तत्त्वों का सम्यक् उपयोग करके इस लक्ष्य की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है और यही जीवन- प्रबन्धन की आदर्श स्थिति है। जैनआचारमीमांसा में जीवन - प्रबन्धन अर्थात् जीवन को सुख, शान्ति एवं आनन्दमय बनाने की प्रक्रिया के अन्तर्गत अनेक तत्त्व निर्दिष्ट हैं। इन्हें पंचाचार की अवधारणा के माध्यम से समझा और प्रयोग में लाया जा सकता है। ये पंचाचार हैं ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार। इनमें से ज्ञानाचार एवं दर्शनाचार जीवन- प्रबन्धन के सैद्धान्तिक पक्ष को तो चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार प्रायोगिक पक्ष को द्योतित करते हैं। इनका सम्यक् प्रयोग कर व्यक्ति जीवन - प्रबन्धन के शिक्षा, समय, शरीर, अभिव्यक्ति, तनाव एवं मनोविकार, पर्यावरण, समाज, अर्थ, भोगोपभोग, धार्मिक-व्यवहार एवं आध्यात्मिक - विकास आदि विविध आयामों का समुचित प्रबन्धन कर सकता है। I 22 Jain Education International — जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only 112 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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