SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभूत सत्य है। व्यक्ति चाहे तो इनके द्वारा निर्दिष्ट जीवन-सूत्रों को सम्यक्तया अपनाकर अपनी जीवन - समस्याओं को हल कर सकता है। इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं। - 2.4.2 समस्याओं के समाधान के लिए एक उदाहरण " जब हम गणित के विषय का अध्ययन करते हैं, तब गणित की पुस्तक में मुख्यतया दो चीजें प्रश्न (Problem) एवं उत्तर (Result ) । होती हैं प्रश्न / Problem In the book At the end of the book प्रत्येक विद्यार्थी का लक्ष्य होता है कि वह प्राप्त प्रश्न का उचित हल करे। इस हेतु उसे योग्य शिक्षक के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षक उसे पुस्तक का आद्योपान्त अध्ययन कराते हैं और वह उचित ढंग से पढ़-समझकर अपने लक्ष्य को पा लेता है । शिक्षक विद्यार्थी को पुस्तक में निम्न बातें समझाता 1) सूत्रों की सिद्धि (Derivation of Formula) 2 ) सूत्र (Formula) 3) सूत्र - प्रयोग सीखने हेतु उदाहरण (Solved Example to learn the approach) 4) प्रश्नमाला (Problem for practice) 5) उत्तरमाला (Result) उत्तर/ Result इन्हें समझकर विद्यार्थी उचित ढंग से हर समस्या का हल निकाल लेता है और क्रमशः एक दिन गणित विषय का विशेषज्ञ बन जाता है I उपर्युक्त बिन्दुओं में, Derivation of Formula (सूत्र की सिद्धि) का अपना विशिष्ट महत्त्व है, यह प्रक्रिया विद्यार्थी में सूत्र की प्रामाणिकता के प्रति एक आत्मविश्वास जाग्रत करती है, अब वह सूत्र की उचितता के निर्धारण के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहता है, अन्यथा दूसरों पर निर्भर रहकर विद्यार्थी भूलवश गलत सूत्र को भी सही मान सकता था। इसी प्रकार, Formula ( सूत्र ) की अपनी उपयोगिता है। बिना सूत्र के किसी भी सवाल का जवाब खोजना असम्भव है। सूत्र का उचित प्रयोग सीखने के लिए Solved Example (उदाहरण) के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता। इसे समझने के पश्चात् विद्यार्थी में Unsolved Problems के समाधान भी खोज निकालने का आत्मविश्वास जाग्रत हो जाता है। शेष दोनों बिन्दु Problems & Results का महत्त्व सिर्फ विद्यालयीन परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए ही नहीं होता, वरन् जीवन में आने वाली प्रत्येक परीक्षा में इनकी उपयोगिता सिद्ध होती है । विद्यार्थी जितने अधिक Problems हल करता अध्याय 2 : जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन- प्रबन्धन 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only 13 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy