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________________ 2.3 जैन दर्शनमीमांसा, आचारमीमांसा एवं जीवन-प्रबन्धन का सह-सम्बन्ध ___ मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है, जो सदैव अपने हित-अहित के बारे में चिन्तन-मनन करता हुआ अनेक प्रयत्न करता रहता है। इन्हीं प्रयत्नों में जीवन-दर्शन, जीवन-आचार एवं जीवन-प्रबन्धन शामिल हैं, जिनका जीवन से अत्यन्त निकटवर्ती सम्बन्ध है। जीवन का मूल उद्देश्य सुख, शान्ति एवं आनन्द की प्राप्ति करते हुए अन्ततः निराकुल वीतराग दशा को पाना है। इस हेतु जैनाचार्यों ने व्यापक एवं गहन दृष्टिकोण से परमतत्त्व का शोधन किया, जिसे हम 'दर्शन' कहते हैं। दर्शन के आधार पर प्रायोगिक नीतियों का निर्माण भी किया, जिससे दर्शन का व्यावहारिक रूप प्रकट हुआ, इसे हम 'आचार' कहते हैं। इसी प्रकार, दार्शनिक सिद्धान्तों को जानकर एवं उसकी प्रायोगिक-नीतियों का निर्माण कर, इनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया का निर्धारण किया, जिसे हम 'प्रबन्धन' कहते हैं। इन्हें अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को प्रबन्धित करता हुआ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकता है। इससे स्पष्ट है कि जीवन से दर्शन, आचार एवं प्रबन्धन का अत्यन्त करीबी सम्बन्ध है। दर्शन, आचार एवं प्रबन्धन – ये तीनों परस्पर एक-दूसरे में गुंथे हुए हैं। यद्यपि इनके बीच में विभाजन-रेखा खींच पाना आसान नहीं है, फिर भी कार्यों के आधार पर इन्हें इस प्रकार से विभाजित किया जा सकता है - 1) दर्शनशास्त्र - यह जीवन-प्रबन्धन के सिद्धान्तों का शास्त्र है। 2) आचारशास्त्र - यह जीवन-प्रबन्धन की प्रायोगिक नीतियों का शास्त्र है। 3) प्रबन्धनशास्त्र – यह जीवन-प्रबन्धन के क्रियान्वयन के सूत्रों का शास्त्र है। इससे स्पष्ट है कि दर्शनशास्त्र सैद्धान्तिक नीतियों का सर्जक है, आचारशास्त्र सैद्धान्तिक नीतियों पर आधारित प्रायोगिक नीतियों का निरूपक है और प्रबन्धनशास्त्र इन प्रायोगिक नीतियों के क्रियान्वयन का प्ररूपक है। इन तीनों को किसी संस्था के तीन वरिष्ठ अधिकारियों की उपमा दी जा सकती है - Su0515IRROORKER SOHA ॐ SINESCRBARMANCE 1) दर्शनशास्त्र Chairman कार्य नीति-निर्माता 2) आचारशास्त्र Executive Director कार्य-निदेशक 3) प्रबन्धनशास्त्र Executive Officer कार्य-पालक RUPIAHarpasaster O HASHA Movies दर्शनशास्त्र एवं आचारशास्त्र यद्यपि जीवन से जुड़े हुए पक्ष हैं, फिर भी प्रबन्धनशास्त्र जीवन के सर्वाधिक निकट है। प्रबन्धनशास्त्र की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह दर्शनशास्त्र एवं आचारशास्त्र के द्वारा निर्देशित नीतियों को जीवन-व्यवहार में अर्थपूर्ण (Meaningful) बनाता है। इसके अभाव में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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