SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 2 जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन-प्रबन्धन (Life Management in Jain Philosophical & Ethical Scriputures) 2.1 जैनदर्शन एवं आचारशास्त्र का सह-सम्बन्ध भारतीय दार्शनिक क्षेत्र में जैनदर्शन का अपना विशिष्ट स्थान है। इसमें वैश्विक सत्य को प्रकाशित करके जीवन के नैतिक विकास के बिन्दुओं का निर्देश दिया गया है। सम्पूर्ण जैन दर्शन-साहित्य के मूलतः तीन विभाग हैं - 1) तत्त्वमीमांसा 2) ज्ञानमीमांसा 3) आचारमीमांसा प्रस्तुत प्रसंग में भी 'दर्शनशास्त्र' शब्द का अर्थ अतिव्यापक है, जिसमें तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), ज्ञानमीमांसा (Epistemology), आचारशास्त्र (नीतिशास्त्र/Ethics) तथा न्यायशास्त्र आदि सभी समाहित हैं। ___ दर्शनशास्त्र का विषय मूलतः सैद्धान्तिक ज्ञान से जुड़ा हुआ है। इसमें पदार्थों की वास्तविकता का बोध कराया जाता है। संसार क्या है? इसमें मनुष्य का क्या स्थान है? सुख-दुःख क्या हैं? इनके कारण क्या हैं? दुःखों से मुक्ति एवं परम तत्त्व की प्राप्ति कैसे हो सकती है? इत्यादि प्रश्नों के समाधान प्राप्त होते हैं। वस्तुतः विशिष्ट तात्त्विक सत्यों का युक्तियुक्त ज्ञान 'दर्शन' कहलाता है, जो किसी की मान्यता या श्रद्धा का विषय बनता है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार, “विज्ञान की तुलना में दर्शन का अपना अलग वैशिष्ट्य होता है। किसी सीमित भाग के व्यवस्थित अध्ययन को विज्ञान (Science) कहते हैं, लेकिन जब अध्ययन की दृष्टि व्यापक होती है और मूल (Root) तक पहुँचती है, तब वह दर्शन कहलाती है। जहाँ तक आचारशास्त्र का सवाल है, इसका विषय जीवन-व्यवहार से जुड़ा हुआ है। यह आदर्श-मूलक है, क्योंकि यह जीवन के नैतिक आदर्शों का निर्धारण करता है एवं कर्तव्यों का बोध कराता है। जीवन कैसे जीना चाहिए? हमारी जीवनशैली में क्या दोष हैं? कहीं नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है? इत्यादि प्रश्नों का निराकरण करना आचारशास्त्र का विषय है। इस 91 अध्याय 2 : जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy