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________________ 0 जीवन ऊँचाई और अच्छाई के हस्ताक्षर » जिनशासनरत्न, प्राणिमित्र श्रीकुमारपाल भाई वि. शाह 'दुल्लहे खलु माणुसे भवे' यानि 'निश्चय ही बड़ा दुर्लभ है मनुष्य होना' (भगवान् महावीर), 'बड़े भाग मानुष तन पावा' (तुलसीदासजी), ‘सबार उपर मानुष रात, तुमार उपर नाही' यानि मनुष्य से बढ़कर जगत् में और कुछ नहीं (बंगाली चण्डीदास)। मनुष्य संसार का V.I.P. Person है, 'सब जीवन में सबसे ऊँचा मानव जीवन है', 'मनुष्य होना ही मूल्यवान् घटना है, अपूर्व अवसर है।' इस जीवन में विचार, उच्चार एवं आचार सही बनाने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। पसंद अपनी अपनी! मनुष्य ही नर, वानर या नारायण बन सकता है। जानवर, आदमी, फरिश्ता, खुदा इत्यादि आदमी की ही सैकड़ों किस्में हैं। मानव चाहे तो इंसान, भाग्यवान् और महान् भी हो सकता है। यदि आदमी बनने में असफल हो जावे, तो वह जानवर से भी बदतर बन जाता है। सावधान! जन्म से अन्त तक बकरी बकरी रहती है, कौआ कौआ रहता है। जानवर जानवर रहता है, लक्ष्य इनका सीमित है, मनुष्य के लिए लक्ष्य असीम है। मनुष्य को जन्म के बाद सिद्ध करना पड़ता है कि वह स्वयं मनुष्य है। आइए, असीम की ओर अग्रसर हों! बाजार, खेत, स्कूल और दूकान जाने वाला जानता है कि मैं किसलिए जा रहा हूँ। क्या हम जानते हैं कि हम कौन हैं व हमारी मंजिल क्या है? मनुष्य जन्म विशेष है। रोते हुए जन्म लेना, शिकायतों में जीवन जीते रहना और निराशा के कोहरे में दम तोड़ना मनुष्य जन्म की सार्थकता नहीं है। विशिष्ट जीवन में विशिष्ट कार्य करने में ही जन्म की सार्थकता है! परम पूज्य मुनिराज श्री महेन्द्रसागरजी म.सा. और मुनिराज श्री मनीषसागरजी म.सा. जैन परम्परा के श्रमण-रत्न हैं। इन्दौर (म.प्र.) निवासी दोनों सन्त उच्च शिक्षा प्राप्त (इन्जीनियर/एम.बी.ए.) हैं। आत्म-साधक और सत्य-शोधक मुनिश्री आत्मानुभूति एवं आत्मदर्शन की ऊँचाइयों को छू रहे हैं। स्वाध्याय का आनन्द, आत्मानुभूति का आस्वाद, हर समय समता और समाधि की प्राप्ति तथा जीवन-प्रबन्धन की दिशा की ओर अग्रसर होने वाले मुनिरत्न श्री मनीषसागरजी महाराज ने अपने लिए और सबके लिए 'जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व' महानिबन्ध प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ ऊँचाई और अच्छाई का हस्ताक्षर है। यह ग्रन्थ जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए सच्ची दृष्टि और सही दिग्दर्शक (गाईड) भी है। आकृति के मनुष्य को वास्तव में प्रकृति का मनुष्य बनाने में सक्षम भी है। आइए, इस Text Book को अपने जीवन की Taste Book भी बनायें। परम पूज्य मुनिराजश्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अभिनन्दन के साथ वन्दन करता हूँ। 03 अगस्त, 2012 धोलका कुमारपाल वि. शाह سے م م م م م م م م م م م م م م م م م م ج م مر مر میں میں میں نے ہیں میں میں ع نی میں م بی حسی می شی شی شی شی شی شی می می می می می می می شیمی अभिनन्दन के स्वर For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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