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________________ आज एक नई जीवनशैली के सृजन की आवश्यकता है, जो हमारे जीवन के विविध तत्त्वों का सम्यक् समायोजन कर सके और जीवन में आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक पक्षों में सन्तुलन पैदा कर सके। इतना ही नहीं, जीवन के किसी पहलूविशेष का एकाकी विकास करने के बजाय जीवन का समग्र विकास कर सके। इस अभिनव जीवनशैली का उपाय जीवन-प्रबन्धन है, अतः कह सकते हैं कि आज विश्व में प्रत्येक मानव को जीवन–प्रबन्धन की नितान्त आवश्यकता है। आगे, इस विषय पर चर्चा की जा रही है कि आखिर जीवन-प्रबन्धन का ऐसा क्या महत्त्व है, जिसके कारण जीवन में इसका प्रयोग अपरिहार्य है। 1.5.2 जीवन-प्रबन्धन का महत्त्व जीवन-प्रबन्धन एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह व्यक्ति और वस्तु रूप संसाधनों की योग्यताओं का सर्वोत्तम सदुपयोग करती है, जिससे जीवन-उद्देश्यों का कुशलतापूर्वक निष्पादन या सम्पादन किया जा सकता है। इसका महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है - ★ जीवन-प्रबन्धन वह महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जीवन के प्रयोजनों की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधक, साधन और साध्य का सम्यक् समन्वय या एकीकरण किया जाता है। यह समन्वयन ही जीवन की सफलता का सूत्र है। ★ जीवन-प्रबन्धन वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से जीवन में अल्प पुरूषार्थ के द्वारा अधिकतम सफलता प्राप्त की जा सकती है। इसमें बाधक तत्त्वों का निषेध कर साधक तत्त्वों को ग्रहण किया जाता है, जिससे मार्ग की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं और साधक तीव्र गति से लक्ष्य की ओर बढ़ जाता है। जैनधर्मदर्शन में इसका प्रायोगिकरूप हमें आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान के माध्यम से मिलता है। अतीत सम्बन्धी बाधक तत्त्वों को दूर करना प्रतिक्रमण है, वर्तमान में उनसे बचना आलोचना है और भविष्य में उनको नहीं स्वीकारना प्रत्याख्यान है।222 यह जीवनशैली व्यक्ति को समय का सदुपयोग, अर्थ की मितव्ययिता, भोग पर नियन्त्रण इत्यादि की सत्प्रेरणा देती है। इस प्रकार जीवन में अल्प प्रयत्न के द्वारा भी अधिकतम सफलता प्राप्त की जा सकती है। जीवन-प्रबन्धन वैयक्तिक-विकास के माध्यम से वैश्विक-विकास की प्राप्ति का साधन है। यदि प्रत्येक व्यक्ति जीवन-प्रबन्धन को अपना ले, तो विश्वस्तरीय समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाए। यहाँ तक की जो समस्याएँ महायुद्धों से भी हल नहीं हो सकती, वे जीवन-प्रबन्धन के माध्यम से आसानी से हल हो सकती हैं। ★ जीवन-प्रबन्धन जीवन को सुव्यवस्थित करता है, जिससे स्वस्थ वातावरण का निर्माण होता है। स्वस्थ वातावरण में ही व्यक्ति की शक्ति का उपयोग सृजनात्मक और रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है और परिणामस्वरूप विकास (Development) और नवाचार (Innovation) की सम्भावनाएँ भी साकार हो सकती हैं। जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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