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________________ महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार, प्रबन्धन के प्रमुख कर्त्तव्य हैं – नियोजन, संगठन, संसाधन, निर्देशन, समन्वयन और नियन्त्रण। इन कर्त्तव्यों की यह विशेषता है कि ये परस्पर एक-दूसरे में गुंथे हुए हैं। अतः, इनकी व्याख्या भले ही क्रम से होती हो, फिर भी प्रायोगिक रूप में ये किसी भी क्रम से प्रयोग में लाए जा सकते हैं। यह तथ्य निम्न चित्र से स्पष्ट है - बाह्य परिवेश नियोजन (Planning) धन संगठन (Organizing) (Staffing) SisRANDIRHAARAA निर्देशन (Directing) Coordinating) नियंत्रण (Controlling) External Environment ARRI प्रबन्धन के कार्यों का परस्पर सम्बन्ध181 1.4.9 प्रबन्धन की प्रकृति Nature of Management) प्रबन्धन की प्रकृति वस्तुतः प्रबन्धन के विविध उपयोग का आधार है। जैसे एक कुशल चिकित्सक औषधि का प्रयोग तभी कर पाता है, जब उसे औषधि के स्वभाव की सही समझ हो, वैसे ही प्रबन्धन का कुशल प्रयोग तभी सम्भव है, जब प्रबन्धन की प्रकृति का समुचित परिज्ञान हो। अतः कुशल प्रबन्धक को चाहिए कि वह प्रबन्धन की प्रकृति या स्वभाव से भली-भाँति परिचित हो और उसका आवश्यकतानुसार प्रयोग करे, अन्यथा जब तक प्रबन्धन का सम्यक् प्रयोग नहीं किया जाता, तब तक लक्ष्य की प्राप्ति भी शंकास्पद रहती है। अतः प्रबन्धन की प्रकृति को जानना अत्यावश्यक है, यह जीवन-प्रबन्धन के लिए भी अपेक्षित है। अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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