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________________ 8 शुभकामना छ परम पूज्य मरूधर मणि उपाध्याय प्रवर श्रीमणिप्रभसागरजी म.सा. यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता की अनुभूति हुई है कि आपका शोध-कार्य पूर्णता को प्राप्त हुआ है। जीवन में सम्यक् प्रबन्धन का अभाव , सबसे बड़ी समस्या है। जीवन के आचार-विचार, समय आदि का सही प्रबन्धन सीख लिया जाए, तो निश्चित ही जीवन तनाव-रहित हो जाता है। ऐसे समीचीन विषय पर आपने शोध-कार्य किया है - आगम की छत्र छांव में! यह कार्य सकल संघ व मानव जाति हेतु उपयोगी साबित होगा। ____ आपने अल्प समय में अप्रतिम मेधा द्वारा संयम व ज्ञान के क्षेत्र में समुचित प्रगति की है, यह शासन व गच्छ का गौरव है। गुरूदेव से प्रार्थना है कि ज्ञान-ध्यान के क्षेत्र में आप और ऊँचाइयाँ प्राप्त कर शासन व गच्छ की सेवा करें। 03 अक्टूबर, 2012 मुम्बई the heउपाध्याय मणिप्रभसागर ------- ------- 8 शुभाशीष , परम पूज्य सरल स्वभावी गणिवर्य श्रीपूर्णानन्दसागरजी म.सा. यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई है कि मुनिश्री मनीषसागरजी द्वारा लिखित 'जैन आचार में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व' नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। निश्चित ही यह एक सराहनीय प्रयास है, जिससे अनेक लोग लाभान्वित होंगे। इसका सबसे अधिक विशिष्ट पहलू यह है कि इसमें जीवन के व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक - दोनों पक्षों के समुचित विकास का मार्गदर्शन किया गया है, यह समन्वय अन्यत्र दुर्लभ है। मेरा यह भी मानना है कि इसमें शिक्षा, समय, मन, वचन, काया , पर्यावरण, समाज, अर्थ, भोग, धर्म एवं अध्यात्म के प्रबन्धन सम्बन्धी जो विशद एवं विस्तृत चर्चा की गई है, वह वर्तमान युग में अतिप्रासंगिक है और प्रबन्धन-अकादमियों में अपनाने योग्य है। आगे भी, आप इसी प्रकार स्व-पर उपयोगी प्रयत्न करते रहें, यही शुभाशीष । 20 सितम्बर, 2012 सैलाना (म.प्र.) गणि पूर्णानन्दसागर जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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