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पर्याय के प्रतिपादन को दार्शनिक उलझनों से बचाकर सहज और सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
संक्षेप में कहें तो यशोविजयजी की नव्यन्याय की शैली में लिखी गई दार्शनिक कृतियों से यह कृति बिल्कुल भिन्न है। इस कृति में दार्शनिक मतवादों की गहराई में जाकर उनकी समीक्षा का प्रयत्न उन्होंने नहीं किया है। जैनदर्शन के क्षेत्र में नव्यन्याय की शैली में यशोविजयजी द्वारा रचित दार्शनिक कृतियों से यह कृति बिल्कुल भिन्न है। इसकी प्रतिपादन शैली इतनी सरल और सुबोध है कि सामान्यजन भी इसकी बात को सहजता से समझ सकता है। जैनदर्शन की और विशेष रूप से यशोविजयजी की दार्शनिक कृतियों में प्रस्तुत कृति की मुख्य विशेषता यह है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में तत्त्वमीमांसीय अवधारणाओं को सरल और स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया गया है।
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