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________________ 492 एक स्पर्श ही रहेगा। परन्तु यह बात लोकविरूद्ध, शास्त्रविरूद्ध और युक्तिविरूद्ध होने से अनुचित है। इसलिए द्रव्य–पर्याय या प्रदेश-स्कन्ध या अवयव–अवयवी में अभेद सम्बन्ध को स्वीकार करने पर कोई दोष नहीं रहेगा। इसका कारण यह है कि प्रदेशों (अवयवों) की गुरूता ही स्कन्ध (अवयवी) के रूप में परिणमित होता है। 1432 मकान की तरह द्रव्य-गुण-पर्याय में एकरूपता है : लोक व्यवहार में पत्थर, लकड़ी, मिट्टी, पानी, सीमेन्ट, लोहा, चूना आदि विभिन्न पदार्थों से बने मकान को एक ही पदार्थ कहा जाता है। जब अनेक द्रव्यों से बनी पर्याय को 'यह एक मकान है' ऐसा कहा जा सकता है तो एक ही द्रव्य के गुण–पर्यायों का अपने द्रव्य के साथ एकरूपता क्यों नहीं हो सकती है ?1433 इसलिए जो आत्मद्रव्य है, वही आत्मद्रव्य गुणमय भी है और वही पर्यायमय भी है। ऐसा व्यवहार अनादिकाल से स्वयंसिद्ध है। द्रव्य का प्रतिनियत व्यवहार नहीं होगा : जीवादि छहों द्रव्यों और उनके गुण-पर्याय में कथंचिद् अभेद सम्बन्ध को स्वीकार करने पर ही 'यह जीव है', 'यह पुदगल है, यह घट है, यह पट है' इत्यादि प्रतिनियत व्यवहार हो सकता है।1434 द्रव्य-गुण-पर्याय में एकान्त भेदभाव मानने पर ज्ञानगुण जिस प्रकार पुद्गल से भिन्न है, उसी प्रकार जीवद्रव्य से भी भिन्न हो जायेगा तथा रूपादिगुण जिस प्रकार जीव द्रव्य से भिन्न है उसी प्रकार पुदगलद्रव्य से भी भिन्न हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में ज्ञानादिगुणों का जीवद्रव्य के साथ तथा रूपादिगुणों का पुद्गलद्रव्य के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहने से ज्ञानादि गुणों से 1432 प्रदेश गुरूता परिणमइजी, खंध अभेदह बंध रे ...............- वही, गा. 3/4 का उत्तरार्ध 1433 भिन्न द्रव्यपर्यायनइ जी, भवनादिक रे एक। भाषइ, किम दाखइ नही जी, एक द्रव्यमां विवेकरे।। ...........-द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 3/5 1434 गुण पर्याय अभेदथीजी, द्रव्य नियत व्यवहार -वही, गा. 3/6 का पूर्वार्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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