________________
___491
उनका मूलकारणभूत मिट्टी, तंतु को प्रदेश कहा जाता है। न्यायदर्शन की भाषा में घट-पट को अवयवी और मिट्टी-तन्तु को अवयव कहा जाता है। न्यायदर्शन के अनुसार अवयव और अवयवी एकान्त भिन्न हैं। परन्तु यशोविजयजी के अभिमत में प्रदेश और स्कन्ध (अवयवी) को एकान्त भिन्न मानने पर स्कन्ध (अवयवी) में दुगुणी गुरूता आ जायेगी। 1428 क्योंकि स्कन्ध (अवयवी) प्रदेश (अवयव) से निर्मित होने से प्रदेशी (अवयव) की गुरूता तो रहेगी ही, साथ में नवीन रूप से उत्पन्न स्कन्ध की गुरूता भी रहेगी। उदाहरणार्थ कुम्हार मिट्टी के घट बनाने के लिए दो किला मिट्टी लेकर आता है और उससे घट निर्मित करता है। मिट्टी से घट बनने से मिट्टी का दो किलो वजन तो रहेगा ही साथ में नवीन रूप से उत्पन्न घट (मिट्टी से एकान्त भिन्न होने से) का वजन भी दो किला रहेगा। अवयव और अवयवी अर्थात् मिट्टी और घट दोनों एकान्त भिन्न होने से घटकाल में मिट्टी और घट दोनों को मिलाकर चार किला वजन अर्थात् दुगुणी गुरूता रहेगी।
यदि कोई नव्य नैयायिक ऐसा कहे कि अवयव की अपेक्षा से अवयवी अत्यन्त गुरूताहीन होता है। 1429 इसलिए दुगुणी गुरूता का दोष नही लगता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अवयवों में ही गुरूता अधिक होती है। इस दृष्टि से परमाणु में ही उत्कृष्ट गुरूता पाई जायेगी। क्योंकि द्वयणुक-त्र्यणुक इत्यादि परमाणुओं से निर्मित होने से परमाणु अवयव है और द्वयणुक आदि अवयवी हैं। इस प्रकार द्वयणुक आदि अवयवियों में अत्यन्त हीन गुरूता और परमाणु में उत्कृष्ट गुरूता पाई जायेगी। 1430 पुन: परमाणु में उत्कृष्ट गुरूता मानने पर तो रूपादि चारों गुणों भी अधिक परिमाण में परमाणु में ही पाये जायेगें 1431 अर्थात् परमाणु में (न्यायमतानुसार) रूप के सातों प्रकार, गंध के दोनों प्रकार, रस के छहों प्रकार और स्पर्श के तीनों प्रकार पाये जायेगें। जबकि अवयवीभूत स्कन्धों में एक रूप, एक रस, एक गन्ध और
1428 खंघ देश भेदइ हुई जी, बिमणी गुरूता रे खंधि . ...............- वही, गा. 3/4 का पूर्वार्ध 1429 "जे अवयवना भारथी अवयवीनो भार अत्यन्त हीन छइ ............-द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 3/4 का टब्बा 1430 द्विप्रदेशादिक स्कंधमांहि किहाइं उत्कृष्ट गुरूता न थइ जोइइ ......-वही गा. 3/4 का टब्बा 1431 अनइं परमाणुमांहि ज उत्कृष्टगुरूत्व मानिइं, तो रूपादिक विशेष पणि परमाणुमांहि मान्या जाईइं, द्विप्रदेशादिकमांहि न मान्या जोइइं ......
.......... -वही, गा. 3/4 का टब्बा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org