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________________ 474 करता है वहाँ बौद्धदर्शन के अनुसार पर्याय के अतिरिक्त न कोई द्रव्य है और न कोई गुण है। वह पर्याय से पृथक् किसी द्रव्य या गुण को स्वीकार नहीं करता है। संसार पर्यायों के प्रवाह के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। उसके अनुसार पर्याय से पृथक कोई द्रव्य और गुण नहीं होने से उनमें पारस्परिक सम्बन्ध का प्रश्न ही नहीं उठ सकता है। लेकिन पर्याय भी क्षणिक होने से एक पर्याय का परवर्तिकालीन दूसरी पर्याय से भी सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता है। यद्यपि बौद्धदर्शन अपने संततिवाद के आधार पर पूर्व पर्याय का उत्तरपर्याय में रूपान्तरण मानता है। किन्तु यदि दोनों ही पृथक-पृथक् क्षण की अवस्थाएं हैं तो उनमें इस प्रकार का सम्बन्ध घटित नही होता है। जैनाचार्यों ने उसके क्षणिकवाद के आधार पर ही उसके संततिवाद की समालोचना की है और यह बताया है कि पूर्व क्षण का उत्तर क्षण से कोई सम्बन्ध ही नहीं हो सकता है। अतः प्रत्येक पर्याय अपने आप में स्वतंत्र सत्ता है। लेकिन वह क्षणिक है और इसलिए बौद्धदर्शन में द्रव्य और गुण की कोई अवधारणा ही नहीं बन पायी है। उनमें मात्र पर्याय की ही अवधारणा हो सकती है और जैसा कि हम पूर्व में कह चुके हैं यदि उसमें द्रव्य और गुण की कोई सत्ता ही नहीं बनती है तो फिर उनमें कोई सम्बन्ध ही नहीं बन सकता है। उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा द्रव्य-गुण-पर्याय के पारस्परिक सम्बन्ध का स्पष्टीकरण जैनदर्शन अनेकान्तवादी दर्शन होने से द्रव्य-गुण-पर्याय में एकान्त भिन्नता या एकान्त अभिन्नता को स्वीकार नहीं करता है। इस दर्शन के अभिमत में द्रव्य-गुण-पर्याय में कथंचित् भिन्नता और कथंचित् अभिन्नता दोनों विद्यमान है। उपाध्याय यशोविजयजी ने भी प्रस्तुत द्रव्यगुणपर्यायनोरास में जैनदर्शन मान्य द्रव्य-गुण-पर्याय के पारस्परिक भेदाभेद सम्बन्ध को अनेक युक्तियों से सिद्ध करने के लिए प्रयास किया है। सर्वप्रथम द्रव्यादि के कथंचित् भिन्न स्वरूप को समझाने के लिए मोतीमाला का सुन्दर और सटीक उदाहरण प्रस्तुत किया है। Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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