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________________ 439 को सहयोग करनेवाला घटधर्मास्तिकाय और पट को सहयोग करनेवाला पटधर्मास्तिकाय है। इसी प्रकार घटाधर्मास्तिकाय, पटाधर्मास्तिकाय, घटाकाश, पटाकाश, घटकाल, पटकाल इत्यादि परद्रव्यसापेक्ष धर्मादि की आकृति अशुद्धव्यंजन पर्याय है।1279 अनेकान्तवाद के आधार पर विवक्षा भेद से जैसे एक ही व्यक्ति बड़े भाई की अपेक्षा से छोटा है और छोटे भाई की अपेक्षा से बड़ा है। उसी प्रकार धर्मादि द्रव्यों की एक ही आकृति पर द्रव्य की अनपेक्षा से शुद्ध व्यंजनपर्याय और परद्रव्य की अपेक्षा से अशुद्ध व्यंजनपर्याय है। आकृति की तरह संयोग भी एक प्रकार की पर्याय है।1280 जिस तरह घटाकृ ति, शरीराकृति लोकाकाश परिमाण धर्मास्तिकाय की आकृति आदि पर्याय है, उसी तरह दो-तीन परमाणुओं के संयोग से बने द्वयणुक-त्र्यणुकादि स्कन्धों तथा घट-पटादि अन्य पदार्थों के संयोग से बनी धर्मास्तिकाय आदि की अवस्था विशेष भी पर्याय है। न्यायवैशेषिकदर्शन ने 'संयोग' को 24 गुणों में से एक गुण माना है। परन्तु 'संयोग' में गुण का लक्षण ‘सहभावित्व' घटित नहीं होता है। संयोग सदा द्रव्य के साथ नहीं रहता है। कभी रहता है तो कभी नहीं भी रहता है। द्वयणुक-त्र्यणुकादि में आज संयोग है तो कल संयोग नहीं भी हो सकता है तथा भविष्य में संयोग बन भी सकता है। इस प्रकार संयोग उत्पाद विनाशवाला होने से द्रव्य का सहभावी गुण नहीं है।1281 पुनः संयोग सदा दो द्रव्यों के मध्य ही होने से प्रश्न उभरता है कि संयोग दो द्रव्यों में से किस द्रव्य का गुण है ? घट और आकाश के संयोग में संयोग घट का 1279 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2, - धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ.674 1280 संयोगइ आकृति परि, पज्जाय कहवाय। उत्तराध्ययनइ भाखियां, लक्षण पज्जाय।। द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 14/11 1281 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2, –धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 675 ....... प्रय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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