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________________ 414 या रूपान्तरण गुण भी परिणमन और रूपान्तरण है। इसी कारण से पर्याय को द्रव्य और गुण दोनों के आश्रित बताया गया है। यहाँ द्रव्य और गुण में होने वाले अवस्थान्तर को ही पर्याय कहा है। उत्तराध्ययनसूत्र में एकत्व, पृथकत्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग को पर्याय का लक्षण कहा है।1194 वस्तु सामान्यविशेषात्मक है। अतः सामान्य की अपेक्षा से एकत्व पर्याय और विशेष की अपेक्षा से पृथ्कत्वपर्याय है। एक पर्याय का दूसरे पर्याय के साथ द्रव्य की दृष्टि से एकत्व होता है। यही एकत्व पर्याय है। एक पर्याय दूसरी पर्याय से तथा एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से पृथक् होता है। यह पृथकत्व भी उन-उन द्रव्यों की पर्याय है। एक, दो आदि संख्या की प्रतीति भी पर्याय है। इसी प्रकार दो द्रव्यों का संयोग और वियोग (अलग होना) भी पर्याय है। प्रज्ञापनासूत्र के पर्यायपद में जीव और अजीव द्रव्य के विभिन्न अवस्थाओं को पर्याय कहा है। इस सूत्र में जीव और अजीव के विभिन्न पर्यायों का विस्तारपूर्वक विवेचन उपलब्ध होता है। साथ ही इन द्रव्यों की सामान्य अपेक्षा से कितनी पर्यायें हो सकती हैं, इसकी भी चर्चा है। इस प्रकार आगम साहित्य में 'पर्याय' शब्द का प्रयोग दार्शनिक ग्रन्थों से किंचित् भिन्न अर्थ में किया गया है। पर्याय का सामान्य अर्थ अवस्था विशेष है। इस दृष्टि से आगम में एक पदार्थ जितनी अवस्थाओं को प्राप्त होता है, उन अवस्थाओं को, उस पदार्थ की पर्यायें कहा गया है। जैसे नारक, देव, तिर्यंच, मनुष्य, सिद्ध आदि जीव की पर्यायें हैं। स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु आदि पुद्गल की पर्यायें हैं। जहाँ दार्शनिक ग्रन्थों में प्रतिक्षण क्रमशः होने वाले परिवर्तन या परिणमन को पर्याय कहा गया है, वहाँ आगम में इन प्रतिक्षण होने वाले परिणमन के द्वारा वस्तु जिन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त होता है, उन-उन विशेष अवस्थाओं को पर्याय कहा गया है। उदाहरण के लिए जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और वैचारिक स्तर पर प्रतिक्षण परिवर्तन घटित होता रहता है। इन 1194 उत्तराध्ययनसूत्र, 28/13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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