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________________ 397 अशुद्ध स्वभाव को मानने पर मोक्ष घटित नहीं होंगे। अतः उभयस्वरूप को मानने से कोई दूषण नहीं आता है।1146 पुद्गल द्रव्य में शुद्ध स्वभाव को नहीं स्वीकार करने पर पुद्गलद्रव्य के रूप रस आदि गुणों में होने वाले स्वतः परिणमन और द्वयणुक, त्र्यणुकादि रूप परिणमन की योग्यता ही नहीं रहेगी तथा अशुद्ध स्वभाव को नहीं मानने पर जीवद्रव्य के संयोग से पुद्गल का औदायिकभाव रूप जो परिणमन होता है, वह भी घटित नहीं होगा।147 इसलिए जीव और पुद्गल दोनों द्रव्यों में ये दोनों स्वभाव पाये जाते हैं। 6. उपचरित स्वभाव - एक द्रव्य के स्वभाव का अन्य द्रव्य में उपचार करना उपचरित स्वभाव कहलाता है।1148 यशोविजयजी ने भी जो स्वभाव एक स्थान में (द्रव्य में) नियमित रूप से होता है, उसका अन्य स्थान (अन्य द्रव्य) में उपचार करने को उपचरित स्वभाव कहा है।1149 माइल्लधवल के अभिमत में भी व्यवहारनय के अनुसार द्रव्य का जो स्वभाव कहा जाता है उसे उपचरितस्वभाव कहा है।1150 जैसे कि मूर्तता स्वभाव पुद्गलद्रव्य का निश्चित स्वभाव है। आत्मा का स्वभाव मूर्तता (रूपीपन) नहीं है। परन्तु पुद्गलद्रव्य के संयोग के कारण आत्मा को भी कथंचित् मूर्त मानना उपचरित स्वभाव है। इसी प्रकार शरीर और कर्म के गाढ़सम्बन्ध के कारण आत्मा में अचेतनता को और आत्मा के सम्बन्ध से शरीर में सचेतनता को मानना उपचरित स्वभाव है। इसी उपचरित स्वभाव के कारण अमूर्तता और अचेतनता धर्मादि चार द्रव्यों का 1146 ए वेदान्त्यादि मत निराकरिउं, उभयस्वभाव मानिइं, कोई दुषण नहीं होई ते वती, ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/9 का टब्बा 1147 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2 का विवेचन –धीरजभाई डाह्यालाल महेता, पृ. 608 1148 स्वभावस्य अपि अन्यत्र उपचारात् उपचरित स्वभावः .................. आलापपद्धति, सू. 123 1149 जी हो नियमित एक स्वभाव जे लाला उपचरिउ परठाण ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 12/10 1150 जं विय दव्वसहावं उवयारं तं पि ववहारं .............. नयचक्र, गा, 65 का उत्तरार्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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