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कृतज्ञता ज्ञापन
"यशोविजयजीकृत 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' : एक दार्शनिक अध्ययन" नामक इस शोध-प्रबन्ध के गुरू-गंभीर कार्य की पूर्णाहुति प्रसंग पर प्रत्यक्ष–परोक्ष रूप से सहयोगी जनों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मेरे हृदय में जितने सघन भाव हैं, उतने शब्द नहीं है। फिर भी मैं सर्वप्रथम उन परम वीतरागी, शुद्धात्मस्वरूपी, अनंत उपकारी तीर्थंकर परमात्मा पार्श्वमणि पार्श्वनाथ के चरणों में श्रद्धाप्रणत हूँ जिनकी पावन वाणी श्रुत रूप में उपकारी बनकर आज भी प्राणी मात्र के लिए निःश्रेयस का पथ प्रदर्शित कर रही है।
मैं उन शासन उपकारी, युगप्रभावी चारों दादा गुरूदेवों के पाद-पद्मों में श्रद्धायुक्त नमन करती हूँ जिनकी निरन्तर बरसती हुई कृपादृष्टि ने इस गुरूत्तर कार्य को संपन्न करने में मुझे ऊर्जा प्रदान की है।
जिनकी अदृश्य प्रेरणा ने मेरी चेतना को जागृत करके मेरे मस्तिष्क के तरंगों को तरंगित किया है, जिनके प्रत्येक शब्द ने जिज्ञासा को जागृत करके द्रव्यानुयोग के प्रति आन्तरिक रूचि उत्पन्न की है, जिनकी ग्रन्थ-रचना की शैली ने समन्वय का पाठ पढ़ाया है, ऐसे जिनशासन के बहुश्रुत दार्शनिक, काव्य-मीमांसक, प्रतिभा संपन्न, युग प्रभावक उपाध्याय यशोविजयजी के प्रति अपनी कृतज्ञता को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती हूँ। उनके चरणों के अनंत-आस्था का अर्घ्य ही समर्पित करके कृतार्थता का अनुभव कर रही हूँ।
खरतरगच्छ नभोमणि गणनायक प.पू. सुखसागरजी म.सा. के दिव्याशीष के आलोक में ही प्रस्तुत शोध कार्य निर्विघ्न और सानंद सम्पन्न हुआ है।
जिनकी दिव्यकृपा व तेजस्वी शक्ति से मुझे शोध कार्य निष्पादन की पात्रता प्राप्त हुई, उन असीम आस्था केन्द्र प्रज्ञापुरूष प.पू. श्रीमजिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. को मैं असीम आस्था के साथ अभिवंदन करती हूँ।
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