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जिनभदगणिकृत ध्यानशतक एवं उसकी हरिभदीय टीका:
एक तुलनात्मक अध्ययन
द्वितीय अध्याय
1. ध्यान की परिभाषा और स्वरूप 2. प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्यान की परिभाषा 3. प्रस्तुत ग्रन्थ की हरिभद्रीय टीका में ध्यान की परिभाषा 4. छद्मस्थ और जिनेश्वर के ध्यान 5. ध्यान के प्रकार 6. चार ध्यानों के शुभत्व और अशुभत्व का प्रश्न 7. आर्तध्यान और रौद्रध्यान बन्धन के हेतु 8. साधना की दृष्टि से धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान का स्थान और
महत्त्व
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