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________________ हरिभद्र के ध्यान और योग-सम्बन्धी ग्रन्थ - महापुरुषों के जीवन में कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं, जो जन-मानस को अभिनव प्रेरणा और आलोक प्रदान करती हैं। उनका जीवन जन-जन के लिए एक आदर्शरूप होता है। महामनीषी, ज्ञान, ध्यान और योग की ज्योति को सर्वत्र फैलाने वाले आचार्य हरिभद्र भी इसी कोटि के महापुरुष थे। अनेक साधकों ने योग की साधना को विश्व के समक्ष प्रकाशित किया है, लेकिन आचार्य हरिभद्रसूरि की योग-साधना की कृतियां अपने-आप में विश्व को अनूठी देन हैं। जिस तरह से हरिभद्र ने टीका-साहित्य को निर्मित कर अपनी निर्मल, पवित्र मेधा का परिचय दिया है, उसी तरह योग पर भी व्यापक दृष्टि से चिन्तन-मनन किया है। आचार्य हरिभद्र ने योग-साहित्य और योग-परम्परा में कौन-कौनसी विशेषताएं प्रदान की हैं, उनका यथार्थ स्वरूप उनके योग-विषयक ग्रन्थों में देखने को मिलता है। उन्होंने सम्पूर्ण योगसाधना की पद्धति को स्वयं की मति-कल्पना के आधार पर प्रतिपादित नहीं किया, अपितु अपने पूर्ववर्ती आचार्यों के विरचित ग्रन्थों के आधार पर ही प्रतिपादित किया है, लेकिन उनकी इतनी विशेषता तो है कि उन्होंने अपने योग-विषयक ग्रन्थों की रचना, वे बालजीवों के हितकारी बनें- इस बात को ध्यान में रखते हुए की थी। योगदृष्टिसमुच्चय में निम्न श्लोक के माध्यम से इस बात की पुष्टि होती है अनेकयोगशास्त्रेभ्यः संक्षेपेण समुद्धृतः। दृष्टिभेदेन योगोऽय मात्मानुस्मृतये परः।।16 महर्षि पतञ्जलि आदि अनेक योगवेत्ताओं की दृष्टि के भेदों-प्रभेदों से युक्त यह योगमार्ग संक्षेप रूप में मैंने अपनी आत्मा की स्मृति के लिए उद्धृत किया है, अर्थात् जिस प्रकार दही के मंथन से मक्खन निकलकर अलग हो जाता है, या सारभूत तत्त्व का प्रकटीकरण होता है, उसी प्रकार योगशास्त्रों के मंथन द्वारा मेरा यह पुरुषार्थ नवनीत के समान है, जो आत्म-कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त करवाता है। आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा विरचित ग्रन्थों में ध्यान तथा योग-विषयक ग्रन्थ निम्नलिखित हैं ___ 1. धर्मबिन्दु 116 योगदृष्टिसमुच्चय, श्लोक 207. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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