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________________ 59. शास्त्रवार्तासमुच्चय सटीका 60. श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति 61. श्रावकधर्मतन्त्र 62. षड्दर्शनसमुच्चय 63. षोडशक 64. संकित पचासी 65. संग्रहणीवृत्ति 66. संपंचासित्तरी 67. संबोधसित्तरी 68. संबोधप्रकरण 69. संसारदावास्तुति 70. आत्मानुशासन 71. समराइच्चकहा 72. सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण सटीका 73. स्याद्वादकुचोद्यपरिहार।105 उपर्युक्त ग्रन्थों की सूची के अन्तर्गत कुछ ग्रन्थों में अनेक ग्रन्थ भी समाहित माने जा सकते हैं, जैसे- 'पंचाशक' में पंचाशक नाम से उन्नीस ग्रन्थ समाविष्ट हैं। ऐसे ही, सोलह-सोलह श्लोकों के षोडशक सोलह, बीस श्लोकों की विंशिकाओं में बीस ग्रन्थ समाहित हैं। इस प्रकार, आचार्य हरिभद्रसूरि की ग्रन्थ-संख्या में और भी वृद्धि हो जाती हरिभद्रसूरि द्वारा प्रणीत अनेक प्रमुख ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैटीका-ग्रन्थ - आचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा आवश्यक, दशवैकालिक, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, नन्दी और अनुयोगद्वार आदि आगमों पर टीका का लेखन-कार्य हुआ। उनकी एक अपूर्ण रचना पिण्डनियुक्ति की टीका को वीराचार्य ने पूर्ण किया। अनेकानेक विषयों को प्रतिपादित करती हुई प्रस्तुत टीकाएं विशेष रूप से शास्त्रीय-ज्ञान की वृद्धि में 105 जैनदर्शन, अनुवादक- पण्डित बेचरदास, प्रस्तावना, पृ. 45-51. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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