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तनाव-मुक्ति और ध्यान -
तनाव से मुक्त रहने के लिए चिन्ताओं से बचना जरूरी है। हर छोटी-छोटी बात को लेकर जब व्यक्ति चिन्ता करता रहता है, तो उसका मुख्य कारण मन के विपरीत परिस्थिति का होना है। जब कोई कार्य हमारी इच्छा या अपेक्षा के अनुकूल नहीं होता, तब मानव-मन चिन्तित हो उठता है। बस ! इससे मुक्त होने के लिए हर हाल में खुश रहना होगा तथा छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करते जाना होगा और बीती बातों के बारे में ज्यादा नहीं सोचना होगा।
आज सभी एक-दूसरे से भयभीत हैं और उस भय से मुक्ति के लिए उनका विश्वास अस्त्र-शस्त्र की दौड़ में ही लगा हुआ है। एक-से-बढ़कर-एक अस्त्र-शस्त्र खोजे जा रहे हैं, लेकिन जैन-परम्परा की मान्यता रही है कि शस्त्रों की इस दौड़ में मानव को तनावों से मुक्ति नहीं मिल सकती और उसका चित्त शान्त नहीं हो सकता। भय से मुक्ति का पारस्परिक-विश्वास के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं।
भगवान् महावीर ने कहा है कि शस्त्र तो एक-से-बढ़कर एक खोजे जा सकते हैं, किन्तु अशस्त्र (अहिंसा) से बढ़कर अन्य कोई विकल्प नहीं है। इस प्रकार हम देखते हैं कि तनाव से मुक्ति के लिए पारस्परिक सहिष्णुता, विश्वास और इच्छाओं को सीमित करना होगा।
इच्छाएँ और भय -दोनों ही विकल्पों से उत्पन्न होते हैं। विकल्पात्मक-चित्त तनावग्रस्त होता है और निर्विकल्प चित्त शान्त होता है। चित्त को निर्विकल्प और शान्त बनाने के लिए ध्यान अति आवश्यक है। ध्यान आत्म-सजगता की स्थिति है। यह आत्म-सजगता की स्थिति तभी सम्भव है, जब चित्त निर्विकल्प हो, अतः तनाव-मुक्ति और ध्यान में एक सहज संबंध है। सम्यक्रूप से ध्यान की साधना से ही आज मानव-जाति तनाव से मुक्ति पा सकती है।
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