________________
मूल कारण हैं। तनावयुक्त व्यक्ति की दशा ठीक वैसी ही है - जैसी जाल में फंसी मकड़ी की ।
भोगवादी जीवन-दृष्टि और आधुनिक अर्थ-व्यवस्था के कारण आज समग्र विश्व तनावग्रस्त है। आज का अर्थतन्त्र इन तनावों में वृद्धि कर रहा है, क्योंकि आज के अर्थतन्त्र का प्रमुख नारा है मान या इच्छाओं को बढ़ाओ, अपना माल खपाओ तथा अधिक धन उपार्जित करो ।
-
इस प्रकार आज की वैश्विक - व्यवस्था ही कुछ ऐसी हो गई है कि मानवसमुदाय तनाव में ही जी रहा है।
454
पारस्परिक - विश्वास की कमी
तनाव का दूसरा कारण पारस्परिक - विश्वास की कमी है और उस कमी के कारण प्रत्येक राष्ट्र और प्रत्येक समाज ने अपने को दूसरों से भयभीत बना रखा है। भय स्वयं ही एक तनाव है, उसकी चर्चा आगे करेंगे । भय से सुरक्षा के साधनों को जुटाने में भी व्यक्ति और राष्ट्र तनावग्रस्त बने हुए हैं। आज विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में पारस्परिक- विश्वास की कमी है, फलतः सभी एक-दूसरे से भयाक्रांत हैं और इस कारण अपनी सुरक्षा के साधन जुटाने के लिए तनावग्रस्त बने हुए हैं। जब राष्ट्र या राष्ट्र की शासन-प्रणाली तनावग्रस्त हो, तो जनता का तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है। इस प्रकार, पारस्परिक विश्वास की कमी राष्ट्रों एवं व्यक्तियों को तनावग्रस्त बनाती है ।
-
Jain Education International
भीतर का भय
तनाव का एक कारण अपने भीतर बैठी हुई भय की वृत्ति है । भयग्रस्त मनुष्य स्वतः ही चिंताग्रस्त बन जाता है । उसकी शारीरिक तथा मानसिक स्थिति विकारग्रस्त तथा शक्तिविहीन बन जाती है । भयग्रस्त व्यक्ति न तो प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर पाता है और न ही किसी बात का सही तरीके से जवाब दे पाता है। चिन्ता, भय, अति लोभ, उत्तेजना, वैचारिक - असंतुलन, रोग, अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना - ये सभी तनाव के मुख्य कारण हैं ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org