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________________ 450 सयोगी-केवली तथा अयोगी-केवली क्रमशः सूक्ष्मक्रिया-अनिवृत्ति तथा व्युच्छिन्नक्रिया-अप्रतिपाती-शुक्लध्यान के स्वामी होते हैं। इसके बाद, ध्याता और ध्यातव्य के भेदाभेद का प्रश्न, ध्याता के चौदहवें गुणस्थान की अपेक्षा आध्यात्मिक-विकास, साथ ही आर्त्त-रौद्रध्यान की विभिन्न भूमिकाओं की विवेचना की गई है। तदनन्तर, धर्मध्यान के ध्याता को लेकर श्वेताम्बर तथा दिगम्बर-परम्परा के मतभेदों का विस्तार से उल्लेख किया गया है और अन्त में पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत -इन चार ध्यानों तथा पार्थिवी, आग्नेयी, वारूणी, मारूती एवं तत्त्वभू – इन पाँच धारणाओं का स्वरूप और जैन- परम्परा में किस तरह ये विकसित हुई, उसकी विवरणा की गई है। पंचम अध्याय प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ के पंचम अध्याय का मुख्य विषय ध्यानशतक और स्थानांग, भगवती और औपपातिक, तत्त्वार्थ, मूलाचार, भगवती-आराधना, धवलाटीका तथा आदिपुराण का तुलनात्मक अध्ययन रहा है। इस अध्ययन में हमने अपनी परम्परा और कालक्रम के आधार पर प्रथम श्वेताम्बर आगम-ग्रन्थों से, तत्पश्चात् तत्त्वार्थसूत्र से, तदुपरान्त दिगम्बरआगमतुल्य ग्रन्थों यथा धवला आदि से ध्यानशतक की तुलना की है। यहाँ दिगम्बर-ग्रन्थों की तुलना में श्वेताम्बर आगमिक टीका-साहित्य को परवर्ती कहने का उद्देश्य यह है कि 'ध्यानशतक', जो हमारा शोध-विषय रहा है, उसके रचनाकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण श्वेताम्बर-परम्परा के थे और लगभग 7 वीं शती में हुए थे। __ इसी अध्याय में आगे, ध्यान-साधना और लब्धि के सन्दर्भ में चर्चा की गई है। भगवतीसूत्र की वृत्ति के अनुसार, –जिससे आत्मा के ज्ञान-दर्शन-चारित्र-वीर्य आदि गुणों से उन-उन कर्मावरणों के क्षय व क्षयोपशम से स्वतः आत्मा में जो शक्ति प्रकट होती है, उसे लब्धि कहा है। लब्धि से यहाँ तात्पर्य लाभ अथवा शक्ति से है। इस क्रम में तत्त्वार्थसूत्र के स्वोपज्ञभाष्य के आधार पर अणिमा, लघिमा आदि लब्धियों के स्वरूप का वर्णन, साधक को लब्धियों की प्राप्ति से दूर रहने का निर्देश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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