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इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में हमने प्रथम तो जैन-परम्परा में ध्यान-साधना के ऐतिहासिक विकास की चर्चा करते हुए विभिन्न युगों में उसका स्वरुप क्या रहा है, यह बताया है और इसी आधार पर बौद्ध ध्यान-साधना, पातंजलयोग की ध्यान साधना और तांत्रिक ध्यान-साधना का तुलनात्मक विवरण देते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि जैन-परम्परा पर अन्य ध्यान साधनाओं का प्रभाव किस रुप में आया है किन्तु समीक्ष्य शोध-ग्रन्थ प्राचीनतम होने के कारण उनके प्रभावों से कितना मुक्त रहा है।
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