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________________ - 432 मुनि द्वारा धारण किए हुए इन महाव्रतों में स्थिरता हेतु आगम में प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ बताई गई है।181 ईर्यासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, आदाननिक्षेपण समिति और आलोकित पान-भोजन – ये अहिंसा-व्रत की पांच भावनाएं हैं। 182 इस तरह इन पांचों यमों (व्रतों) की पाँच-पाँच भावनाएँ कही गई हैं। यथार्थ वस्तुतत्त्व का बार-बार स्मरण करना ही भावना है। इनका आंशिक रुप से पालन करने वाले श्रावक तथा पूर्णरुपेण पालन करने वाले साधु कहलाते हैं। . इनका पूर्णरुप से पालन करने वाले शीघ्र ही आत्मोन्नति के शिखर पर पहुँच जाते हैं। आंशिक रुप से इसका पालन करने वाले गृहस्थादि मंद गति से आत्मोन्नति की ओर बढ़ते हैं। योगसाधना के लिए आत्मोत्कर्ष हेतु दोनों मार्गों की उपयोगिता रही हुई है। 2. नियम : इच्छाओं को वश में करने के लिए ग्रन्थकारों ने विविध प्रकार के नियमों का उल्लेख किया है। पातंजल योगसूत्र में पांच नियमों का उल्लेख है, यथा- शोच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्रणिधान। देह और मन की शुद्धिकरण का नाम शोच है। शरीरनिर्वाह हेतु परपदार्थों के प्रति मूर्छा का त्याग सन्तोष है। चित्तविशुद्धि हेतु किया गया तपानुष्ठान ही तप है। सद्ग्रन्थों का मंथन स्वाध्याय है तथा परमात्मा के स्वरुप का चिन्तन ईश्वरप्रणिधान है। ग) 'एक्कंचिय एत्थवयं निदिटुं जिणवेरहिं सव्वेहि। पाणातीवार्यविरमणवसेसा त्तस्स रक्खट्ठा।। -नियुक्ति 18| 'पंचयामस्स पणवीसं भावणाओ पण्णत्ता' पंचयामस्य पंचविंशतिः भावनाः प्रज्ञप्ताः। -समवायांग, सम 25 182 क) 'ईरिया समिई मणगुत्ती .............. हासविवेगे। -समवायांग ख) प्रश्नव्याकरण सूत्र 2.5.163 पृष्ठ 250 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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