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मिश्रित रुप है। नवीन शाह द्वारा 'ध्यान अ शान्ति नुं धाम' पुस्तक में और प. पू. निर्मला माताजी द्वारा 'निर्मल सुरभि पुस्तक में ध्यान सम्बन्धी विषय-वस्तु को बहुत ही सरल पद्धति से साधकों को अवगत करवाया गया है। डॉ. चमनलाल गौतम ने 'ध्यान की सरल साधनाएँ' नामक पुस्तिका में ध्यानयोग का स्वरुप, प्रकार तथा शरीरस्थ, रुपस्थ, मन्त्रस्थ की ध्यान-साधना, ध्याता, ध्यान और ध्येय की त्रिपुटी, ध्यान की अनुभवसिद्ध विधि और त्राटक का अभ्यास आदि अनेक विषयों का उल्लेख किया है। ध्यान के सन्दर्भ में उनका कहना है - "संसार के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों की सफलता के लिए मनोयोग अथवा ध्यान की, एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जब चित्त, भौतिक विषयों से हटकर अन्तः प्रदेश में प्रवेश करने लगता है तो समझना चाहिए कि ध्यान का उद्देश्य पूर्ण हो रहा है।'
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डॉ.नेमिचंद ने 'चयनिका' नामक मासिक पत्रिका में कुछ तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा – “ 1950 ई. के बाद से तीन ध्यान - पद्धतियाँ भारतीय क्षितिज पर आईं - 1. विपश्यना, 2. प्रेक्षा और 3. समीक्षण । इन पद्धतियों के अलावा अलग-अलग साधु-संतों साधकों ने किंचित् हेरफेर के साथ अपनी-अपनी लघुध्यान पद्धति विकसित की और कई शिविर आयोजित किए। 160
इस प्रकार, आधुनिक युग में जो विभिन्न ध्यान-साधना की पद्धतियाँ विकसित हुई हैं, उनमें जैन, बौद्ध और हिन्दू - परम्परा का एक समन्वय ही प्रमुख रहा। ये सभी मानव को तनावों से मुक्त करने की दिशा में गतिशील हैं। इस प्रकार, 'ध्यानशतक' की ध्यान -पद्धति को अन्यान्य पद्धतियों से समन्वित करने का प्रयास हुआ है।
159 ध्यान की सरल साधनाएँ ।
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डॉ. चमनलाल गौतम, पृ. 5, 7
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'संदर्भ 'चयनिका' डॉ. नेमिचंद जैन द्वारा आलेखित जैन विद्या पत्राचार पाठ्यक्रम की 9 इकाई से लिया पृ. 42-43
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प्रस्तुत
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