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________________ उनकी पूर्ति के अभाव में अथवा पूर्ति के साधनों की खोज में व्यक्ति तनावग्रस्त होता जा रहा है। असीम आनंद और शाश्वत शान्ति के स्रोत के प्राप्त न होने का मुख्य कारण मानसिक तनाव तथा विपरीत धारणाएँ हैं। इस तनाव के कारण व्यक्ति की आत्मिक शांति भंग हो चुकी है, अतः उस आत्मिक - शान्ति की खोज में वह पुनः आध्यात्म, ध्यान और योग की ओर आकर्षित हुआ है । इस आकर्षण के कारण भारतवर्ष में अनेक प्रकार की ध्यान की विधाओं, पद्धतियों का विकास हुआ है, उसमें सर्वप्रथम आचार्य रजनीश ने पूर्व और पश्चिम की विविध ध्यान-पद्धतियों को एक-दूसरे से संबंधित करते हुए उनका विकास किया है। उन्होंने योग के सन्दर्भ में 'पतंजलि योग सूत्र' के आधार पर पुस्तकें लिखीं। तत्पश्चात् ध्यान-साधना के लिए मार्गदर्शिका के रुप में उन्होनें 'ध्यानयोग' पुस्तक लिखी। जिसमें ध्यान क्या है ? साधकों के लिए प्रारंभिक सुझाव, ध्यान की विधियाँ, ध्यान में बाधाएँ और अंत में ओशो से पूछे गये प्रश्नोत्तर आदि विषय-वस्तु का समावेश किया गया है। इसके बाद 'ध्यान-सूत्र' नामक पुस्तक में चित्त-शक्तियों के रुपांतरण द्वारा विचार-शुद्धि, भाव-‍ व - शुद्धि, सम्यक् - समाधि के सूत्र दिए गए हैं। ओशो का कहना है कि चित्त और शून्यता से समाधि फलित होती है। 147 'शुद्धि और शून्यता से समाधि' के सन्दर्भ में आचार्य रजनीश ने कहा है" शरीर की शून्यता शरीर - तादात्म्य का विरोध है। हमें ऐसा प्रतीत नहीं होता कि हमारा शरीर है। किसी तल पर हमें प्रतीत होता रहता है कि मैं शरीर हूँ। मैं शरीर हूँ - यह भाव विलीन हो जाए, तो शरीर - शून्यता घटित होगी। शरीर के साथ मेरा तादात्म्य टूट जाए, तो शरीर - शून्यता घटित होगी। 148 इसी संबंध में 'समाधि के सप्त द्वार' नामक पुस्तक भी लिखी है। जिसमें अस्तित्व से तादात्म्य का विवेचन करते हुए मन के पार जाकर बोधिसत्व बनने की प्रेरणा है। ओशो ने उपंसहार में एक अनोखी बात से अवगत करवाया है - "एक ही 147 ध्यानयोग 148 419 ध्यान - सूत्र Jain Education International ओशो, पृ. 5 से 10 आचार्य रजनीश, पुस्तक से उद्धृत, पृ. 110 For Personal & Private Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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