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________________ द्रव्यस्तव में शुभाशुभ मिश्रता है ? 4 द्रव्यस्तव पुण्यरुप है या धर्मरुग ? इस ग्रन्थ के आधार पर टीका की रचना भी की गई है। इस ग्रन्थ के अन्तर्गत ध्यान, समापत्ति समाधि, जय आदि की प्राप्ति के लिए जगह-जगह उपायों का वर्णन किया है। 8. आराधक - विराधक - चतुर्भगी - इस ग्रन्थ का मूल विषय चार विषयों पर आधारित है - 1. देशतः आराधक, 2. देशतः विराधक, 3. सर्वतः आराधक और 4. सर्वतः विराधक । 9. उपदेश - रहस्य प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृतभाषीय है। यह रचना आर्याछन्द में की गई है तथा इसमें 203 गाथाएँ हैं। इस रचना का आधार हरिभद्रसूरि द्वारा प्रणीत उपदेशपदं नामक ग्रन्थ है । इसमें रहस्यभूत मार्गानुसारी आदि अनेक विषयों को प्रतिपादित किया है । 10. एन्द्रस्तुतिचतुर्विशतिका इसमें चौबीस तीर्थंकरों का वर्णन तथा स्तुति की गई है। 11. कूपदृष्टान्त विशदीकरण - इसमें कूप का उदाहरण, गृहस्थों के करने योग्य द्रव्यस्तव की निर्दोषता का वर्णन किया गया है 1 12. ज्ञानार्णव इसमें पाँच ज्ञान के स्वरुपों का वर्णन है । 13. धर्मपरीक्षा – इसमें उत्सूत्र - प्ररूपणा के निवारण का वर्णन किया गया है। 14. महावीस्तव इसमें बौद्ध - नैयायिक के एकान्तवाद का निरसन है। - - - 15. भाषा रहस्य चर्चा है। 413 Jain Education International — 16. सामाचारी- प्रकरण तर्कशैली में वर्णन है । इस ग्रन्थ में प्रज्ञापनादि में निहित भाषा के भेद-प्रभेद की - इस ग्रन्थ में इच्छा, मिथ्या आदि दस प्रकार का 17. देवधर्मपरीक्षा – इसमें देवलोक में प्रभुप्रतिमा की पूजा होती है - इस बात की पुष्टि आगमिक - प्रमाण के आधार पर की गई है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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