SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 394 4. छन्दानुशासन - यह 'छन्दशास्त्र' संबंधी मौलिक कृति है, इसमें विविध छन्दों का उल्लेख है। उन छन्दों के अनेक उद्धरण हेमचन्द्राचार्य की स्वयं की कृतियों में देखने को मिलते 5. द्वात्रिंशिकाएँ - भारत के विभिन्न दर्शनों की अवधारणा तथा जैन-दर्शन के साथ तुलना संबंधी हेमचन्द्राचार्य की अन्ययोगव्यवच्छेदिका और अयोगव्यवच्छेदिका नामक दो कृतियाँ बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इन दोनों द्वात्रिंशिकाओं में शब्दों की सजावट बहुत सुन्दर है। 6. द्वयाश्रय काव्य - इस काव्य का अपरनाम 'कुमारपाल-चरित्र' भी है। इस कृति में संस्कृत और प्राकृत -दोनों भाषाओं का प्रयोग हुआ। प्रस्तुत काव्य के 28 सर्गों में से 20 सर्ग संस्कृतभाषीय तथा शेष 8 सर्ग प्राकृतभाषीय हैं। कुमारपालचरित्र का वर्णन सातवें सर्ग में है और इस ग्रन्थ की महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि इसमें संस्कृत प्राकृत व्याकरण के नियमों को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया है। 7. प्रमाणमीमांसा - पांच अध्यायों वाले ग्रन्थ की विषय-वस्तु में प्रमाण, प्रमेय, प्रमिति, प्रमेता आदि का सविस्तार विवेचन मिलता है। यह पूरा ग्रन्थ अनुपलब्ध है, मात्र अनुमान प्रमाण तक का विवेचन है। 8. परिशिष्ट पर्व - 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र' के समान ही यह ग्रन्थ भी ऐतिहासिक है। इसमें जैनधर्म के प्रभावक आचार्यों की जीवन-झाँकियों का आख्यान है। इस ग्रन्थ पर डॉ.हर्मन जेकोबी की प्रस्तावना {Parisista Parva Introduction} विशेष पठनीय एवं मननीय है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy