________________
संस्कृत - व्याकरण में 4791 सूत्र हैं । प्राकृत भाषा के व्याकरण के सूत्रों की संख्या 1119 है। सूत्रों का निर्माण सरल भाषा में किया गया है।
यह ग्रन्थ शाकटायन - व्याकरण की बहुलता वाला है। इसकी मुख्य विषयवस्तु पांच प्रकार की है, यथा उणादिपाठ, गणपाठ, धातुपाठ लिंगानुशासन, वृत्ति। संस्कृत-प्राकृत– भाषा के सम्मिश्रण वाला यह व्याकरण अत्यन्त उपयोगी, सरस, सुबोध है।
2. कोश
―
अभिधान चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टु और देशीनाममाला इन चारों कोश के रचयिता हेमचन्द्राचार्य हैं। इनमें से अभिधान - चिन्तामणि कोश विशालकाय है । यह छह काण्डों में विभक्त है। इसका श्लोक - परिमाण 1541 है। यह रचना ‘सिद्धहेमशब्दानुशासन' की परवर्ती है। निम्नांकित श्लोक इसका प्रमाण है
“प्रणिपत्यार्हतः सिद्धहेमशब्दानुशासनम् । रुढ़यौगिकमिश्राणां नाम्नां माला तनोम्यहम् ।।
79
393
79 अभिधान– चिन्तामणि, श्लोक - 1
Jain Education International
अभिधान चिन्तामणि कोश एक वस्तु के अनेक पर्यायवाची संस्कृतनाम, अनेकार्थसंग्रह का मुख्य विषय एक शब्द के अनेक अर्थ, निघण्टुकोश के अन्तर्गत वनस्पतिशास्त्र के संदर्भ में अनेक नाम और देशीनाममालाकोश के अन्दर संस्कृतप्राकृत व्याकरण से असिद्ध देशी शब्दों का संग्रह है। इन चारों कोशों में हेमचन्द्राचार्य ने शब्द संसार का अपार वैभव भर दिया है ।
-
3. काव्यानुशासन
यह ग्रन्थ काव्य में रहे गुण-दोषों की नूतन एवं रहस्यमय व्याख्याओं से युक्त है। इसमें ग्रन्थकार ने काव्य - परियोजन की परिभाषा में एक नई पद्धति का प्रयोग किया। इस ग्रन्थ के आधार पर ग्रन्थकार स्वयं ने 'अलंकार - चूड़ामणि' नामक एक लघु टीका की रचना की ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org