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हरिभद्रयुग : (ईसा की आठवीं शती से दसवीं शती तक) :
विद्वत्वर्य आचार्य हरिभद्र का व्यक्तित्व बहुत ही ओजस्वी, तेजस्वी था। उन्होंने न केवल जैन धर्म के क्षेत्र में अपितु सम्पूर्ण भारतीय धर्म और दर्शन के क्षेत्र में अपनी लेखनी से प्रचुर मात्रा में साहित्य की रचना की। टीका-ग्रन्थों के साथसाथ उन्होंने दर्शन, धर्म, योग, आचार, उपदेश, व्यंग्य तथा चरित-काव्य आदि अनेक विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। अनुश्रुति तो यह है कि उन्होंने 1444 ग्रन्थों का सर्जन किया था, किन्तु यह परम्परागत मान्यता है। यथार्थ स्थिति क्या है ? इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। आचार्य हरिभद्र अपने व्यक्तिगत संबंधों की जानकारी देने के सन्दर्भ में प्रायः अनुदार ही रहे। पूर्ववर्ती अनेक आचार्यों के समान उन्होंने भी अपने बारे में कहीं कुछ नहीं लिखा, मात्र अपनी गुरुमाता के सन्दर्भ में अपने को याकिनीसूनु कहकर विनयभाव को प्रदर्शित किया।
उनके गृहस्थ-जीवन के सन्दर्भ में सर्वप्रथम संकेत हमें 'भद्रेश्वर की कहावली' में प्राप्त होते हैं। उसके अनुसार सम्भवतः चित्तौड़ के ब्रह्मपुरी नामक कोई कस्बे या उपनगर में उनका जन्म हुआ था, यद्यपि उनके जन्म-स्थल को लेकर मतैक्य नहीं है। उनके पिता का नाम शंकर भट्ट तथा माता का नाम गंगा कहा जाता है। पिता के नाम के पीछे जो 'भट्ट' शब्द है, वह ब्राह्मण-जाति का सूचक है। ‘गणधर-सार्धशतक' की सुमतिगणिकृत वृत्ति में तो हरिभद्र का ब्राह्मण के रुप में स्पष्ट निर्देश मिलता है। हरिभद्र का विद्याध्ययन कहाँ, कैसे हुआ, किसके सानिध्य में हुआ ? यह निर्णय करना तो कठिन है, पर हाँ, धर्म और दर्शन की
34 क) “पिवंगुईए बंभपुणीए” –पाटन संघवी के बाडे के जैन भण्डार की वि.सं. 1497 में लिखित ताड़पत्रीय पोथी, खण्ड-2, पत्र-300 ख) अधोलिखित प्राचीन ग्रन्थों में जन्मस्थान के रूप में चित्तौड़-चित्रकूट का उल्लेख मिलता है
- हरिभद्रसूरिकृत 'उपदेशपद' की श्री मुनिचन्द्रसूरिकृतटीका (वि.सं. 1174) - प्रभाचन्द्रसरिकृत 'प्रभावकचरित्र नवम शृंग। (वि.सं. 1334)
- राजशेखरसूरिकृत 'प्रबन्धकोष' अपर नाम 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' (वि.सं. 1405) 35 संकरो नाम भटो, तस्स गंगा नाम भट्टिणी। – कहावली, पत्र 300 36 "एव सो पंडित्तगव्दमुबहमाणो हरिभद्दो नाम माहणो। - धर्मसंग्रहणी की प्रस्तावना से उधृत, पृ.5 वि.सं. 1295
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