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इतना तो कहा जा सकता है कि कायोत्सर्ग निर्विकल्पता की ओर ले जाता है, किन्तु जहाँ तक समाधि का प्रश्न है, समाधि मूलतः निर्विकल्प - चेतना की अवस्था है । जहाँ ध्यान में चित्तवृत्ति की एकाग्रता साधी जाती है, वहाँ कायोत्सर्ग में ममत्व के त्याग के माध्यम से निर्विकल्पता की दिशा में बढ़ने का प्रयत्न होता है, किन्तु निर्विकल्प - दशा में स्थिरता - यह समाधि है, अतः हम कह सकते हैं कि ध्यान और कायोत्सर्ग निर्विकल्प समाधि के साधक हैं ।
'समाधि' शब्द का तात्पर्य यह है कि जिसमें पूर्णरूप से समस्त पर अधिकार हो, वह समाधि है, क्योंकि जैन-दर्शन में साधना का सार समत्व की उपलब्धि ही है। समाधि पूर्ण समत्व की अवस्था है, इसलिए वह साध्य है, ध्यान और कायोत्सर्ग उसके साधन है। ध्यान से एकाग्रता आती है और कायोत्सर्ग से निर्ममत्व जागता है • और इस प्रकार ध्यान और कायोत्सर्ग समाधि की उपलब्धि के अपरिहार्य तत्त्व हैं।
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