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________________ 328 * मूलाचार में मात्र शुक्लध्यान के स्वामी का निर्देश है, जबकि ध्यानशतक में शुक्लध्यान के साथ-साथ आर्त, रौद्र तथा धर्मस्थान के स्वामी का भी उल्लेख है।98 गहराई से चिन्तन करने पर तात्पर्य यह निकलता है कि दोनों ग्रन्थों में ध्यान के वर्णन में जहाँ कुछ समानताएँ प्राप्त होती हैं, वहीं कुछ मौलिकताएँ भी मिलती हैं। इसको देखते हुए भी एक ग्रन्थ का दूसरे ग्रन्थ की रचना में कुछ प्रभाव रहा है -ऐसा प्रतीत नहीं होता है। ध्यानशतक और भगवती-आराधना का तुलनात्मक अध्ययन - भगवती-आराधना के रचयिता आचार्य शिवार्य हैं। सम्भवतः यह दूसरी अथवा तीसरी शताब्दी में रची गई रचना है। आराधक को केन्द्रबिन्दु में रखकर इसमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र और तप -इन चार आराधनाओं की चर्चा की गई है। इसके अन्तर्गत समाधिमरण को भी मुख्यता दी गई है। क्षपक के आधार से मरण के सत्रह प्रकारों में पण्डित-पण्डित-मरण, पण्डित-मरण, बाल-पण्डित-मरण, बाल-मरण और बाल-बाल-मरण इन पाँच मरण प्रकारों के सन्दर्भ में प्ररूपणा की गई है। प्रसंगानुसार, भक्तप्रत्याख्यान में यह कहा गया है कि जो संसार के जन्म-मरण के दुःखों से पीड़ित है, वह संक्लेशहर्ता धर्मध्यान के चार भेदों तथा शुक्लध्यान के चार भेदों का चिन्तन-मनन करता है और इस प्रकार के चिन्तन-मनन के दौरान कभी आधि-व्याधि-उपाधि के प्रसंग आ भी गए तब भी आर्त और रौद्र ध्यान का विचार नहीं करता है।99 % वही, गाथा 18, 23, 63 व 64 9 सल्लेहणा विसुद्धाकेई .....णासेइ।। - भगवतीआराधना, विजयोदय टीका गाथा 1669-70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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