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________________ निर्देशित किया गया है । " तत्त्वार्थाधिगमसम्मत सूत्रपाठ में भी इसी कथन की सहमति है। आर्त्तध्यान किन-किन गुणस्थानों में होता है - इस कथन को लेकर तत्त्वार्थसूत्र तथा ध्यानशतक – दोनों एकमत हैं कि अविरत, देशविरत और प्रमत्तसंयत-गुणस्थानों में ही आर्त्तध्यान संभव है ।" इसके अतिरिक्त, ध्यानशतक में आर्त्तध्यानी के लक्षण, उनकी गति का कारण, आर्त्तध्यान संसार - परिभ्रमण का कारण क्यों है, आर्त्तध्यानी किस लेश्या का अधिकारी होता है, इत्यादि, 71 कुछ अन्य चर्चा भी की गई है, जबकि तत्त्वार्थसूत्र में ये सब चर्चा नहीं है । जहाँ तत्त्वार्थसूत्र में रौद्रध्यान के भेदों एवं स्वामी का निरूपण मात्र एक ही सूत्र में किया गया है, 72 वहाँ ध्यानशतक में गाथा क्रमांक - 19 से 27 तक में रौद्रध्यान के सन्दर्भ में चर्चा की गई है। 73 तत्त्वार्थसूत्र के समान भेदों एवं स्वामी के निर्देश के अतिरिक्त रौद्रध्यानी के फल, लेश्या, लक्षण आदि की चर्चा भी उपलब्ध है । ” तत्त्वार्थसूत्र में धर्मध्यान के चार भेदों को मात्र एक ही सूत्र में निर्देश करके धर्मध्यान के निरूपण को ही समाप्त कर दिया, 74 जबकि ध्यानशतक की गाथा क्रमांक - 28 से 68 में भावना, देश, काल, आसन - विशेष, आलम्बन, क्रम, ध्यातव्य, ध्याता, अनुप्रेक्षा, लेश्या और फल - इन धर्मध्यान के बारह द्वारों की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। ” तत्त्वार्थसूत्रोक्त उसके चार भेदों की सूचना यहाँ ध्यातव्यद्वार में करके उनके अलग-अलग स्वरूप 75 68 तह सूल - सीसरोगाइवेयणाइ.. .......नियाण चिंतणमण्णाणाणुगयमच्चतं । ध्यानशतक, गाथा7 - 9 69 वेदनायाश्च । विपरीतं मनोज्ञानाम ।। 7° तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् । । - तत्त्वार्थसूत्र 9 / 35; तदविरय-देसविरया - पमायं । - ध्यानशतक - 18 " एयं चउव्विहं राग-दोस वट्ठइ अट्ठमि झाणंमि । - ध्यानशतक, गाथा 10-17 72 हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः । - तत्त्वार्थसूत्र, 9/36 73 सत्तवह-वेह - बंधण - डहणऽकण ... रोद्दज्झाणोवगयचित्तो । - - Jain Education International 322 तत्त्वार्थसूत्र, 9/32–33 ध्यानशतक, गाथा 19-27 74 आज्ञाऽपाय विपाकसंस्थान विचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य । - तत्त्वार्थसूत्र, 9/37 7s झाणस्स भावणाओ .. धम्मझाणी मुणेयव्वो । ध्यानशतक, गाथा 28-68 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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