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________________ 318 समान रुप से दृष्टिगोचर होता है, असमान-रूप स्थिति तो मात्र इतनी है कि क्रमभेद स्पष्टतया दिखाई देता है। उपर्युक्त विषय-वस्तु की विवेचना के बाद हमें यह प्रतीत होता है कि स्थानांगसूत्र में रही हुई ध्यानविषयक समग्र विषय-वस्तु ध्यानशतक में भी यथावत ली गई है, लेकिन ध्यानशतक के अन्तर्गत ध्यान के सामान्य लक्षण, काल, आर्त्त-रौद्र आदि चार ध्यान किस-किस गुणस्थान में संभव है, किस ध्यान का अधिकारी कौन है, कौन से ध्यान से जीव को किस गति की प्राप्ति होती है, कौनसे-कौनसे ध्यान के स्वामी को कौनसी-कौनसी एवं कितनी-कितनी लेश्या होती है; इत्यादि सभी तथ्यों का विचार किया गया है, किन्तु ये सभी विचार स्थानांगसूत्र में नहीं मिलते हैं। इससे यह समझना होगा कि ध्यानशतक की रचना का मुख्य आधार तो स्थानांगसूत्र ही रहा है, परन्तु साथ ही साथ उसमें तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों का भी आधार लिया गया है। ध्यानशतक और भगवती तथा औपपातिकसूत्र का तुलनात्मक अध्ययन - स्थानांगसूत्र की ध्यानसम्बन्धी विषय-वस्तु प्रायः शब्दतः भगवतीसूत्र" और औपपातिकसूत्र में मिलती है। सामान्य रूप से शब्द में तथा क्रम में जो अन्तर है, वह इस प्रकार है – 1. आर्तध्यान के लक्षणों में जहाँ स्थानांग और भगवतीसूत्र में चौथा 'परिदेवनता' है,49 वहाँ औपपातिकसूत्र में परिदेवनता के स्थान पर 'विलपनता' है, साथ ही ध्यानशतकगत परिदेवन को आर्तध्यान का तीसरा लक्षण माना गया है, लेकिन अभिप्राय की दृष्टि से मतभेद नहीं है। 2. जहाँ स्थानांगसूत्र और 46 ध्यानशतक 87-88 47 से किं तं झाणे? झाणे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा- अट्टे झाणे, रोद्दे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे। - भगवतीसूत्र, शतक 25, उद्दे 7, सूत्र 600-612 48 औपपातिक – तपविवेचनान्तर्गत, सूत्र-3., पृ. 49-50, संपा.-मधुकरमुनि, प्र.आगम समिति ब्यावर 49 अट्टस्सणंझाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा – कंदणया, सोयणता, तिप्पणया, परिदेवणया। __ - भगवतीसूत्र, श 25, उद्दे 7, सू. 602 पृ. 974 50 तस्सऽक्कंदण-सोयण-परिदेवण-ताडणाइं लिंगाई।। – ध्यानशतक, गाथा 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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