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________________ 311 ध्यानशतक के रचनाकार जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण के सामने तत्त्वार्थसूत्र की रचना भी हो चुकी थी। जहाँ तक दिगम्बर-आगमतुल्य ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें 'मूलाचार' और 'भगवती-आराधना' ये दोनों ग्रन्थ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण के 'ध्यानशतक' से कुछ पूर्ववर्ती माने जा सकते हैं, किन्तु जहाँ तक धवलाटीका और आदिपुराण का प्रश्न है, ये दोनों ग्रन्थ 'ध्यानशतक' के बाद के ही हैं। क्योंकि ये दोनों ग्रन्थ लगभग आठवीं-नौवीं शताब्दी के बाद ही आते हैं, जबकि 'ध्यानशतक' लगभग छठवीं-सातवीं शताब्दी में ही रचा गया है। ध्यानशतक और स्थानांगसूत्र का तुलनात्मक अध्ययन - जैसा कि हमने पूर्व में सूचित किया है कि जिन ग्रन्थों को आज हम आगम के नाम से जानते हैं, वे ही प्राचीनकाल में श्रुत, या सम्यक्-श्रुत ' अथवा 'गणिपिटक' के नाम से भी जाने जाते थे। ‘गणिपिटक' में समस्त द्वादशांगी समाहित हो जाती है। 'विशेषावश्यकभाष्य' की गाथा में यह स्पष्ट है कि अर्थ के प्रणेता तीर्थंकर और सूत्र के प्रणेता गणधर होते हैं। 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में भी इसी बात का समर्थन मिलता है कि द्वादशांगी के कर्ता गणधर है। वे तीर्थंकरों के वचनों के आधार पर ही इन ग्रन्थों की रचना करते हैं। द्वादशांगी का तीसरा अंग ‘स्थानांगसूत्र' है। अभी जिस रूप में यह आगमग्रन्थ उपलब्ध है। उसका संकलन एवं सम्पादन वीर–निर्वाण के करीब 980 वर्ष पश्चात 'वल्लभीनगर में देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में हुआ था। देवर्द्धिगणि ने । सम्मसुयं जं इमं अरहंतेहि भगवंतेहि। नंदी-||सं.आ.महाप्रज्ञ लाडनूं।।, सूत्र 65, पृ. 122 ....... सर्वज्ञैः सर्वदर्शिमिः प्रणीतं द्वादशांग गणिपिटकं तद्यथा-आचारः सूत्रकृतं स्थानं समवायः व्याख्या-प्रज्ञप्ति ज्ञातधर्मकथाः उपासकदशाः अन्तकृतदशाः अनुत्तरोपपातिदशाः प्रश्नव्याकरणानि विपाक श्रुतंदृष्टिवादः। - नंदीसूत्र/ प्रकरण 4/ सूत्र 65 3 अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं ।। – विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1119 4 आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः ।। - प्रमाणनयतत्त्वालोक 4/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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