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________________ 303 योगशास्त्र191, ज्ञानार्णव192 और स्वाध्यायसूत्र193 में पिण्डस्थ-ध्येय की पांच धारणाओं का वर्णन किया गया है, वे निम्नांकित हैं - 1.पार्थिवी-धारणा, 2. आग्नेयी-धारणा, 3. श्वासना-धारणा, 4. वारूणी-धारणा और 5. तत्त्वभू (तत्त्वरूपवती)-धारणा। . धारणा, अर्थात् ग्रहण या धारण करने योग्य, या फिर ग्रहण किए जाने के स्थान। एक-एक धारणा का वर्णन इस प्रकार है - 1. पार्थिवी-धारणा - इस सम्पूर्ण लोक को तीन भागों में विभक्त किया गया है - 1. उर्ध्वलोक, 2. मध्यलोक एवं 3. अधोलोक। एक रज्जु के बराबर परिमाण वाला यह मध्यलोक है और मध्यलोक को नरलोक, तिर्यग्लोक अथवा मृत्युलोक आदि नामों से भी जाना जाता है। जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं, उसको ही मध्यलोक कहते हैं। मध्यलोक के समान ही लम्बाई एवं चौड़ाई वाला क्षीरसागर जम्बूद्वीप के समान एक लाख योजन वाला, स्वर्णकान्तियुक्त सहस्रदल कमल है। साधक को मन-मस्तिष्क में ऐसा चलचित्र अंकित करना है कि उस कमल के बीचोंबीच एक श्वेत, उज्ज्वल सिंहासन है, फिर उस पर बैठकर ऐसी कल्पना करना है कि मेरे समस्त कर्मों (कषायों) का नाश हो रहा है - ऐसा चिन्तन-मनन करना पार्थिवी-धारणा कहलाती है।194 योगशास्त्र195, ज्ञानार्णव16 में भी पार्थिवी धारणा के संबंध में इसी बात का समर्थन मिलता है। 191 पार्थिवी स्यादथाग्नेयी मारूती वारूणी तथा। तत्त्वभूः पंचमी चेति पिण्डस्थे पंच धारणा।। -योगशास्त्र, प्र.7/9 192 पार्थिवी स्यात्तथाग्नेयी श्वसनाख्याथवारूणी। तत्त्वरूपवती चेति विज्ञेयास्ता यथाक्रमम् ।। -ज्ञानार्णव- 34/3 199 पार्थिव्याग्नेयी-मारूती-वारूणी-तत्त्वभ्वाख्याः पंचधारणाः पिण्डस्थस्य। - स्वाध्यायसूत्र, 10/14 194 तिर्यग्लोक समं ध्यायेत् क्षीराब्धिं तत्र चाम्बुजम। सहस्रपत्रं स्वर्णाभं जम्बूद्वीपसमं स्मरेत् । तत्केसरततेरन्तः स्फुरपिंगगप्रभांचिताम्। स्वर्णाचलप्रमाणां च कर्णिका परिचिन्तयेत्।। श्वेतसिंहासनासीनं कर्म निर्मूलनोद्यतम् । आत्मानं चिन्तयेत् तत्र पार्थिवीधारणेत्यसौ।। 195 तिर्यग्लोकसमं ध्यायेत् .... .....पार्थिवीधारणेत्यसौ।। – योगशास्त्र- 7/10,11,12 1% तिर्यग्लोकसमं योगी स्मरति......भवोद्भूतकर्मसंतानशातने ।। – ज्ञानार्णव- 34/4-9 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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