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________________ 259 हो जाने के बाद जो पूर्व के ज्ञाता और सुप्रशस्त संहनन अर्थात् वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले श्रमण होते हैं, वे ही शुक्लध्यान के प्रथम दो भेदों पृथक्त्ववितर्कविचार और एकत्ववितर्कअविचार के ध्याता होते हैं। सयोगी-केवली तीसरे सूक्ष्मक्रियाअनिवृत्ति-शुक्लध्यान के और अयोगी-केवली चौथे व्युच्छिन्नक्रिया-अप्रतिपातीशुक्लध्यान के अधिकारी होते हैं। . . __'तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार, श्रुतकेवली शुक्लध्यान के प्रथम दो चरणों के तथा केवली शुक्लध्यान के चरम दो चरण के अधिकारी कहलाते हैं। सर्वार्थसिद्धि तत्त्वार्थवार्तिक में लिखा है कि श्रुतकेवली में पूर्व के दो शुक्लध्यानों के साथ धर्म्यध्यान भी होता है। विशेष इतना है कि श्रेणी चढ़ने के पहले धर्मध्यान और दोनों श्रेणियों में वे दो शुक्लध्यान होते हैं। 'तत्त्वार्थाधिगमभाष्यसम्मत' सूत्रपाठ के अनुसार उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय के धर्म्यध्यान के साथ प्रथम के दो शुक्लध्यान भी होते हैं। .. 'धवला' में शुक्लध्यान के स्वामी के सन्दर्भ में यह अभिप्राय प्रकट किया गया है कि प्रथम शुक्लध्यान का ध्याता चौदह, दस या नौ पूर्व का ज्ञाता, तीन प्रकार के प्रशस्त संघयण वाला और उपशान्तकषाय-वीतराग-छद्मस्थ होता है। शुक्लध्यान के दूसरे भेद का स्वामी चौदह, दस अथवा नौ पूर्वो का जानकार, प्रथम संघयन वाला तथा अन्यतर संस्थानवाला, क्षायिकसम्यग्दृष्टि क्षीणकषायी होता है। 33 एक बात ध्यान देने योग्य है कि यहाँ बारहवें गुणस्थान में शुक्लध्यान के दूसरे भेद और 27 एतेच्चिय पुव्वाणं पुव्वधरा सुप्पसत्थसंघयणा। दोण्ह सजोगाजोगा सुक्काण पराणकेवलिणो।। - ध्यानशतक-64 28 शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः । परे केवलिनः ।। - तत्त्वार्थसूत्र, 6/39, 40 29 च-शब्देन धर्म्यमपि समुच्चीयते। तत्र व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिरिति श्रेण्यारोहणात् प्राग्धर्म्यम्, श्रेण्योः शुक्ले इति व्याख्यायते।। - सर्वार्थसिद्धि, 9/37 30 तत्त्वार्थवार्तिक, 9/37 ॥ शुक्ले चाद्ये।। - तत्त्वार्थसूत्र 9/39 22 धवला, पुस्तक, 13, पृ. 78 33 वही, पुस्तक 13, पृ. 79 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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