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तरह प्राथमिक स्तर पर आलम्बन लेना पड़ता है, किन्तु उसे अन्त में छोड़ना भी होता है। साधना के क्षेत्र में साधना को स्वीकार किया जाता है, किन्तु लक्ष्यप्राप्ति के समय उसका परित्याग भी आवश्यक होता है, अतः ध्यान के क्षेत्र में हमें आलम्बन से निरालम्बन की ओर प्रगति करना होती है।
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