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________________ 175 आगम में भावना को कहीं-कहीं अनुप्रेक्षा भी कहते हैं।407 वहां 'अणुप्पेहा' शब्द आध्यात्मिक-चिन्तन एवं प्रगति के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। इस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं।108 आत्मचिन्तन, मन की एकाग्रता के लिए किसी एक विषय पर केन्द्रित होनायही ध्यान की स्थिति है। आत्मा का आत्मा में रमण करना ही भावना है। स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि भव्यात्माओं को इससे अनन्त सुख की प्राप्ति होती है, इसलिए भावना को आनन्द की जननी कहा गया है।409 आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है- अनुप्रेक्षा के सभी प्रयोग चिन्तन पर आधारित हैं। अनुप्रेक्षा का प्रयोग प्रेक्षा का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है।410 ___ ध्यानशतक में धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं बताई गई हैं1. एकत्वानुप्रेक्षा 2. अनित्यानुप्रेक्षा 3. अशरणानुप्रेक्षा 4. संसारानुप्रेक्षा। एकत्वानुप्रेक्षा - एकत्व का अर्थ एकता व अकेलापन है। साधक ध्यान की गहराई में संयोग में वियोग का अनुभव कर अकेलेपन का साक्षात्कार करता है। इस प्रकार, भेद-विज्ञान करके अपने स्वरूप में स्थित हो अविनाशी से एकता का अनुभव करना एकत्वानुप्रेक्षा है। यही आचारांगसूत्र में कथित ध्रुवचारी बनने की साधना है।411 स्थानांगसूत्र के अनुसार, जीव के द्वारा सदा अकेले संसार में परिभ्रमण करना और सुख-दुःख भोगने का चिन्तन करना एकत्वानुप्रेक्षा है।12 ध्यानदीपिका में कहा गया है कि जीव शुभाशुभ कर्मों के फल और अनेक जन्म-मरण का फल अकेला ही भोगता है। वह पुत्र, मित्र, पत्नी और कुटुम्बजनों के 407 (क) स्थानांगसूत्र (आत्मा. म.) - 4/1/12. (ख) तत्त्वार्थसूत्र- 9/7. (ग) कुन्दकुन्दभारती 'बारसणुपेक्खा' 408 (क) उत्तराध्ययनसूत्र- 29/22. (ख) स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका, पृ. 01. 409 अनुप्रेक्षाः भव्यजनानन्द जननीः। - स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका, पृ. 01. 410 अमूर्त्तचिन्तन पुस्तक से उद्धृत, युवाचार्य महाप्रज्ञ. 411 आचारांगसूत्र. 412 (क) स्थानांगसूत्र, मधुकरमुनि, चतुर्थ स्थान, उद्देशक- 1, सूत्र- 68, पृ. 224. (ख) भगवतीसूत्र- 803. (ग) औपपातिकसूत्र- 20. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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