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करते हुए अन्त में निर्विकल्प - कि ध्यान-साधना में क्रमशः ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।
- दशा को प्राप्त किया जाता है। इससे यह निश्चित होता है
अध्यात्मसार के अनुसार, केवलज्ञानी महापुरुषों का मोक्ष प्राप्त करने का अतिनिकट समय हो, अर्थात् शैलेशी के पहले का अन्तर्मुहूर्त्त का काल हो, तब वे योग का निरोध करते हैं, किन्तु इसमें भी क्रम होता है। वे सर्वप्रथम बादरकाययोग का आश्रय लेकर बादरवचनयोग और बादरमनोयोग का निरोध करते हैं, फिर श्वासोच्छ्वास को रोककर फिर सूक्ष्म मनोयोग, सूक्ष्म वचनयोग और अन्त में सूक्ष्म काययोग का निरोध करते हैं। इस प्रकार स्थूल और सूक्ष्म मन, वचन और काया के योगों के निरोध का क्रम निश्चित है | 396
ध्यानदीपिका में इसी बात का समर्थन करते हुए केवलज्ञानियों के मोक्ष जाने के अवसर पर मन आदि योगों के निरोधरूप ध्यान का अनुक्रम बताया है। 397
संक्षेप में, ध्यानप्राप्ति का क्रम दो प्रकार का बताया गया है
1. केवलज्ञानी आत्मा जब मोक्ष पाने के अतिनिकट काल में अन्तिम शैलेशी - अवस्था
के समय योग-निरोध करता है ।
2. अन्यों को स्वस्थानुसार होता है । 398
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7. ध्यातव्य - द्वार
वस्तुतः धर्मध्यान के सन्दर्भ में भी विवेचित किए गए हैं।
जिस ध्यान में वस्तु या पदार्थ के यथार्थ रूप का विचार-विमर्श अथवा चिन्तन-मनन किया जाता है, वह धर्मध्यान है और धर्मध्यान के ध्याने योग्य प्रमुख विषय
ध्यातव्य - द्वार के चार भेद माने गए हैं। ये चार भेद
396 मनोरोधाऽदिको ध्यान - प्रतिपत्तिक्रमो जिने ।
_शेषेषु तु यथायोगं समाधानं प्रकीर्त्तितम् । । - अध्यात्मसार - 16/34.
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ध्यानानुक्रम उक्तः केवलिनां चितयोगरोधादि ।
भवकाले त्वितरेषां यथासमाधि च विज्ञेयः । । 398 जैनसाधना-पद्धति में ध्यानयोग, प्रियदर्शना, पृ. 270.
ध्यानदीपिकायाम्, श्लोक - 119.
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