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________________ कहा गया है कि 'सम्यग्दर्शन के बिना व्यक्ति चलता-फिरता भाव है। उत्तराध्ययन सूत्र में इसके महत्व को बतलाते हुए महावीर ने कहा है कि 'दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता, चारित्र के बिना निर्वाण नहीं होता।' तत्वार्थसूत्र का प्रारम्भ सम्यग्दर्शन शब्द से ही होता है"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रमोक्षमार्गः ।"2 सम्यग्दर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यक्चारित्र- ये तीनों मिलकर ही मोक्ष के साधन हैं, फिर भी तीनों में सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन का स्थान है, अतः यह पूर्णरूपेण सिद्ध हो जाता है कि जैनधर्म में दर्शन का कितना अधिक महत्व है। सम्यग्दर्शन के अभाव में न सम्यग्ज्ञान होता है, न सम्यक्चारित्र ही। जैनदर्शन में आत्मिक विकास के चौदह गुणस्थानों या सोपानों का विवरण है, जिसमें प्रथम सोपान मिथ्यात्व है, परन्तु मोक्ष-महल का प्रथम सोपान तो सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने के लिए मिथ्यात्व को ही नष्ट करना होगा, क्योंकि मित्थ्यात्व सम्यक्त्व में बाधक है। जब तक मिथ्यात्व है, तब तक सम्यक्त्व नहीं होता और जब तक सम्यक्त्व नहीं होता, तब तक सत्य-असत्य का ज्ञान नहीं होता, सन्मार्ग-कुमार्ग की पहचान नहीं होती, जीव-अजीव का मान नहीं होता है, अतः सर्वप्रथम मिथ्यात्व रूपी रोग का ही उन्मूलन करना होता है, मिथ्यात्व को ही जड़-मूल से उखाड़ फेंकना होता है। मिथ्यात्व के जाते ही जीव अनादिकालीन मिथ्या धारणाओं से मुक्त होकर सत्य के यथार्थ धरातल पर स्थित होता है और मोक्षरूपी साध्य तक पहुँचने के लिए अपनी यात्रा का प्रारम्भ कर लेता है। सम्यग्दर्शन के अभाव में मोक्षमार्ग की यात्रा का प्रारम्भ ही नहीं होता है। मोक्षमार्ग में प्रवेश की प्रथम शर्त यह है कि मिथ्यात्व और उसके सहकारी कारणों का जड़ से उन्मूलन हो, साथ ही मिथ्यात्व और उसके सहयोगी कारणों से सुरक्षा के उपायों की भी आवश्यकता होगी, जैसे - विमान की यात्रा के प्रारम्भ में प्रवेश हेतु यह जाँच करते हैं कि यात्री के पास किसी प्रकार का कोई शस्त्र तो नहीं है, सामान अधिक तो नहीं है, चोरी का माल तो नहीं है, अवैध सामान तो नहीं है। यदि नहीं है, तो विमान 1 उत्तराध्ययन - म. महावीर स्वामी जी - 28/30 तत्वार्थसूत्र - आ. उमास्वाति - 1/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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