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________________ श्रावकधर्म की चर्चा पंचाशक-प्रकरण में स्वतन्त्र रूप से मिलती है और उसमें यह भी बताया गया है कि श्रावकधर्म भी अपेक्षाभेद से दो प्रकार का है (1) सम्यग्दृष्टि श्रावक के कर्तव्य रूप। (2) देशविरति श्रावक में कर्तव्य रूप। __देशविरति श्रावक के कर्त्तव्यरूप श्रावकधर्म का विवेचन हमने प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में तृतीय अध्याय में और मुनिधर्म का विवेचन प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय में किया है। इस अध्याय में सामान्य रूप से मोक्षमार्ग की चर्चा करने के उपरान्त इसके द्वितीय खण्ड में सम्यग्दृष्टि श्रावक के कर्तव्य की भी विस्तार से चर्चा की गई है। यहाँ सबसे प्रथम सम्यग्दर्शन के स्वरूप की संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की जा रही है। चूंकि पूर्व में ही पंचाशक-प्रकरण में सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप की स्वतन्त्र पंचाशक में चर्चा की गई है, किन्तु सम्यग्ज्ञान की विशेष चर्चा इस शोधग्रन्थ के पंचाशक-प्रकरण में नहीं है, अतः उसकी चर्चा के हेतु हमें आचार्य हरिभद्र के अन्य ग्रन्थों एवं अन्य आचार्यों के ग्रन्थों को ही आधार बनाना पड़ता है। अग्रिम पृष्ठों में हम सर्वप्रथम आचार्य हरिभद्र के अनुसार 'सम्यग्दर्शन' की चर्चा करेंगे। सम्यग्दर्शन हरिभद्रसूरि विरचित ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन की विशद् व्याख्या मिलती है। सावयपण्णति व श्रावकधर्मविधि-प्रकरण- इन दो ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन का विशेष वर्णन है, किन्तु पंचाशक-प्रकरण में सम्यग्दर्शन का संक्षिप्त वर्णन ही उपलब्ध होता है। ____ आचार्य हरिभद्र के विचारों में बारह व्रत धारण करने वाले श्रावक का मूल धर्म सम्यक्त्व है। जीव जब तक सम्यक्त्व से रहित नहीं होता, तब तक वह प्रगाढ़ कर्मबन्ध से मुक्त नहीं हो पाता है।' हरिभद्र के अनुसार मिथ्यात्व का अभाव ही सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व का अधिकारी कौन है ? इस विषय में वे लिखते हैं कि वह श्रावक जो न स्वयं मिथ्यात्व का सेवन करता है, न ही करवाता है और न ही करने वाले का अनुमोदन करता है, वही सम्यक्त्व सावयपण्णति - आचार्य हरिभद्रसूरि - पृ - 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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