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________________ जहाँ तक त्रिविध मोक्षमार्ग का प्रश्न है, मुख्य रूप से इसकी चर्चा उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र से ही प्रारम्भ होती है, यद्यपि आगमों में स्थानांग,समयावांग आदि कुछ ग्रन्थों में त्रिविध मार्ग का उल्लेख मिल जाता है। विद्वानों की मान्यता है कि स्थानांग, समयावांग आदि ग्रन्थ तत्त्वार्थ से परवर्ती हैं और उससे प्रभावित भी हैं। इस सन्दर्भ में भी हमें यह जान लेना चाहिए कि अकेला सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान या सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग नहीं हैं- ये तीनों समवेत रूप से ही मोक्षमार्ग हैं, इसलिए तत्त्वार्थ-सूत्र के प्रथम सूत्र में यह कहा गया है कि ये तीनों अलग-अलग मोक्षमार्ग नहीं हैं,अपितु इन तीनों से मिलकर ही मोक्षमार्ग बनता है। जहाँ तक आचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों का प्रश्न है, उन्होनें उत्तराध्ययन की आगमिक-परम्परा का अनुसरण करते हुए मोक्षमार्ग के इन चार अंगों का विवेचन किया है। पंचाशक-प्रकरण में हमें सम्यक्चारित्र के साथ-साथ सम्यक्तप की भी विस्तृत विवेचना मिलती है। 'तपविधि' नामक एक स्वतन्त्र पंचाशक उन्होंने लिखा है। जहाँ तक पंचविध मोक्षमार्ग का प्रश्न है, तो उसमें ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार -ऐसे पांच अंग माने जाते हैं। जो लोग चतुर्विध मोक्षमार्ग की चर्चा करते हैं, वे वीर्याचार का अन्तर्भाव सम्यक्तप में कर लेते हैं। आचार्य हरिभद्र ने अपने इस पंचाशक-प्रकरण में वीर्याचार की कोई चर्चा नहीं की है। इस प्रकार आचार्य हरिभद्र अपने इस ग्रन्थ में चतुर्विध मोक्षमार्ग की ही चर्चा करते हैं। इस सन्दर्भ में यह भी ज्ञातव्य है कि पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने सम्यग्दृष्टि के स्वरूप और सम्यग्दृष्टि के तथ्यों की विस्तार से विवेचना की है। वहाँ सम्यग्ज्ञान की विस्तृत चर्चा नहीं मिलती है, यद्यपि उनके दर्शन और न्याय सम्बन्धी ग्रन्थों में पंचज्ञान, प्रमाण, नय, निक्षेप और भेदविज्ञान की भी चर्चा मिलती है। मोक्षमार्ग के समग्र विवेचन के लिए हमने यहाँ हरिभद्र के ग्रन्थों के आधार पर ही पंचज्ञान प्रमाण, नय, निक्षेप और भेदविज्ञान की संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की है। जहाँ तक सम्यक्चारित्र का प्रश्न है, तो वह मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त होता है (1)श्रावकधर्म (2)मुनिधर्म। 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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