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________________ वि.सं. 1216 लगभग 13 वीं शती प्रवचनसारोद्धार समाचारी प्रशमरति समाचारी शतकम् आ. नेमिचन्द्र तिलकाचार्य आ. उमास्वाति समयसुन्दरगणि मानविजयगणि आर्यभद्र संघदासगणि श्रुतधरआचार्य 13 वीं शती 17 वीं शती वि.सं. 1731 धर्मसंग्रह 2री शती बृहत्कल्पसूत्र व्यवहारभाष्य प्रव्रज्याविधानकुलकम् 6 टी शती 13 वीं शती 13. पिण्ड विधान अर्थात् भिक्षा विधि पंचाशक - साधु के लिए जीवन निर्वाह हेतु आहार लेने का विधान है, परन्तु आहार ग्रहण करते समय आहार की शुद्धता का ध्यान रखना भी अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि शुद्ध आहार की गवेषणा ही साधुता है, अतः आहार विधि का वास्तविक रूप से पालन करने के लिए जैन आचार्यों ने 42 दोषों से रहित आहार ग्रहण करना बताया है। आहार की शुद्धता से सम्बन्धित आचार्यों द्वारा अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध हैं। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की सूची यहां दी जा रही है - कृति कृतिकार कृतिकाल आचारांगसूत्र उपदेष्टा भगवान महावीर ई.पू. 6 टी शती सूत्रकृतांगसूत्र उपदेष्टा भगवान महावीर ई.पू. 6 टी शती प्रश्नव्याकरणसूत्र वर्तमान संस्करण परवर्ती है। 6 टी शती दशवैकालिकसूत्र आर्य शय्यंभव ई.पू. 4 थी शती व्यवहारसूत्र 3 री शती बृहद्कल्पसूत्र आर्यभद्रबाहु 3 री शती पिण्डनियुक्ति आर्यभद्र लगभग 2 री शती ओघनियुक्ति आर्यभद्र 2 री शती आर्यभद्रबाहु 628 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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