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________________ सुबोधा समाचारी चन्द्रसूरि लगभग 14 वीं शती उपस्थापन विधि शिवनिधानमणि लगभ 14 वीं 15 वीं शती पं. आशाधर 13 वीं शती अनगार धर्मामृत आचार-दिनकर वर्धमानसूरि वि.सं. 1463 षडावश्यक बालावबोधवृत्ति तरूणप्रभसूरि लगभग 15 वीं शती उपधानप्रकरण मानदेवसूरि लगभग 14-17 वीं शती बृहद्योगविधि समाचारीप्रकरण अज्ञातसूरि 17 वीं शती देवेन्द्रसागरसूरि 17 वीं शती आधुनिक चैत्यवन्दन पंचाशक - जैन परम्परा में देव वन्दन-विधि का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। वन्दन-विधि से सम्बन्धित साहित्य का विवरण इस प्रकार से है - कृति कृतिकार कृतिकाल आवश्यकनियुक्ति आर्यभद्र वि.सं. 2 री शती मूलाचार वट्टकेराचार्य वि.सं. 5-6 टी शती आवश्यकचूर्णी जिनदासगणि वि.सं. 7 वीं शती साधुदिनकृत्य आ. हरिभद्र वि.सं. 8 वीं शती महानिशीथसूत्र उद्धारक आ. हरिभद्र (प्रा.) वि.स. 8 वीं शती चैत्यवन्दनभाष्य देवेन्द्रसूरि वि.सं. 13 वीं शती प्रवचनसारोद्धार नेमिचन्द्रसूरि वि.सं. 1216 समाचारी तिलकाचार्य लगभग 13 वीं शती विधिमार्गप्रपा जिनप्रभसूरि वि.सं. 1363 श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति देवेन्द्रसूरि वि.सं. 14 वीं शती जइसमाचारी (यति समाचारी) भावदेवसूरि वि.सं. 1412 616 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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