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________________ 14. 1. 15. 16. भिक्षुप्रतिमाकल्पविधि पंचाशक 18. तपविधि पंचाशक इन विधि-विधान सम्बन्धी पंचाशकों से सम्बन्धित विषयों की चर्चा अन्य कौन से जैन ग्रन्थों में है, इसकी चर्चा हम अग्रिम पृष्ठों में करेंगे 17. आलोचना-विधि पंचाशक प्रायश्चित्तविधि पंचाशक कल्पविधि पंचाशक श्रावक धर्म विधि जिन शासन में श्रावक उसे कहा जाता है, जो देशविरत धर्म का आराधक है । तीर्थंकरों के द्वारा स्थापित देशविरत धर्म के द्वारा अणुव्रतों को धारण कर संसार में रहकर मर्यादाओं पूर्वक जीवन का निर्वाह करता है। तीर्थंकरों की आज्ञानुसार अपनी चर्या को सुव्यवस्थित रखता है । ऐसे श्रावक धर्म से सम्बन्धित आगमानुसार साहित्य श्वेताम्बर एवं दिगम्बर - दोनों सम्प्रदायों में सैंकड़ों की संख्या में उपलब्ध है । जिनमें से कुछ प्रमुख ग्रन्थों की सूची निम्न प्रकार से है कृति कृतिकार गणधरों द्वारा प्रणीत आ. उमास्वाति कुन्दकुन्दाचार्य कुन्दकुन्दाचार्य उपासकदशांगसूत्र (प्रा.) तत्त्वार्थसूत्रगत श्रावकाचार चरित्रप्राभृतगत श्रावकाचार कुन्दकुन्द श्रावकाचार रयणसार श्रावकाचार रत्नमाला श्रावकाचार रत्नकरण्डक श्रावकाचार Jain Education International आ. कुन्दकुन्द आ. शिवकोटि आ. समन्तभद्र For Personal & Private Use Only कृतिकाल 1 से 3 शती वि.सं. 1 से 3 री शती वि.सं. 5 वीं शती वि.सं. 5 वीं शती वि.सं. 5 वीं शती वि.सं. 5 वीं शती वि.सं. 5 वीं शती 612 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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