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किसी भी धर्म-दर्शन के दो पक्ष होते हैं। 1. भावना परक और 2 साधना परक । इस साधना परक पक्ष का सम्बन्ध भावों के साथ-साथ विधि-विधान से भी होता है। जैन साधना से सम्बन्धित विधि-विधान की चर्चा में आचार्य हरिभद्र का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने अपनी योग एवं साधना सम्बन्धी कृतियों में इन विधि-विधानों की चर्चा की है। उन्होंने अपने योग सम्बन्धी ग्रन्थों - यथा योगविंशिका, योगशतक, योगदृष्टि समुच्चय आदि में जहाँ योग साधना की सामान्य विधियों की चर्चा की है, वहीं पंचवस्तुक, श्रावकप्रज्ञप्ति (सावयपण्णत्ति), अष्टक, षोडशक, विंशिका एवं पंचाशक प्रकरण आदि में श्रावकों एवं मुनियों के द्वारा करणीय विधि-विधानों की चर्चा की है। पंचाशक प्रकरण में उन्होंने प्रायः पचास-पचास गाथाओं में 19 विधि-विधानों की चर्चा की है, जो निम्न है
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षष्ठ- अध्याय
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य
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श्रावक धर्मविधि पंचाशक
दीक्षाविधि पंचाशक
चैत्यवन्दनविधि पंचाशक
पूजाविधि पंचाशक
प्रत्याख्यानविधि पंचाशक
स्तवनविधि पंचाशक
जिन भवन निर्माण विधि पंचाशक
जिन बिंब प्रतिष्ठा विधि पंचाशक
जिनयात्रा विधि पंचाशक
उपासक प्रतिमा विधि पंचाशक
साधु धर्म विधि पंचाशक
पिण्डविधान विधि पंचाशक
शीलांगविधान - विधि पंचाशक
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