________________
(ख) इंगितमरण- इसमें पादोपगमन के समान ही प्रक्रिया होती है, पर इतना विशेष है कि निश्चित किए गए क्षेत्र में हलन-चलन की छूट होती है। (ग) भक्तप्रत्याख्यान- इसमें हलन-चलन की छूट होती है, शरीर-सुश्रुषा की भी छूट होती है तथा तीन अथवा चार प्रकार के आहार त्याग करने की प्रक्रिया होती है। (घ) इत्वर- अनशन का द्वितीय प्रमुख भेद इत्वर है। इसमें उपवास से लेकर छह माह तक के लिए आहार का त्याग किया जाता है। ऊनोदरी- भूख से कम खाना ऊनोदरी-तप कहलाता है। ऊनोदरी-तप संयम-साधना, निद्राजय, आवश्यक आराधना आदि के लिए है। भोजन का पूर्णतः त्याग नहीं किया जा सकता। अतः उपलब्ध आहार में से अपनी आवश्यकता से कुछ कम आहार करना भी तप है और यही तप ऊनोदरी-तप कहलाता है, जिसे सहज रूप में सभी कर सकते हैं। यह तप इन्द्रियों के नियंत्रण में भी सहयोगी होता है। ऊनोदरी तप के भी दो भेद हैं- 1. द्रव्य, 2. भाव। द्रव्य-ऊनोदरी- शास्त्रसम्मत है कि बत्तीस ग्रास का आहार होना चाहिए। इसमें से एक ग्रास भी कम खाया, तो यह द्रव्य-ऊनोदरी-तप हुआ। भाव-ऊनोदरी- इस तप में आहार-त्याग की बात नहीं की गई है। आहार से सम्बन्धित क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की प्रवृत्ति, जो जीव में होती है, उसको कम करना ही भाव-ऊनोदरी तप है, जैसे कोई दिन में दस बार गुस्सा करता है, तो उसे नौ बार करना, नौ बार करता है, तो उसे आठ बार करना, इस प्रकार कषायों की संख्या को कम करते जाना ही भाव-ऊनोदरी है। वृत्ति-संक्षेप- भिक्षाचर्या में, भोजन में, पदार्थों को खाने की इच्छा कम करना, जैसे- भोजन में मिठाई दो है, तो एक कम कर देना- यह अभिग्रह श्रावकों के लिए वृति-संक्षेप है। भिक्षाचर्या में विशेष अभिग्रह या नियम लेकर भिक्षा प्राप्त करना श्रमणों के लिए वृति-संक्षेप है। रस-त्याग- दूध, दही, घी, गुड़ आदि सभी रसों का त्याग, अथवा एक-दो रसों का त्याग रसत्याग-तप कहलाता है। रस-त्याग से अर्थ है- रसना पर नियन्त्रण।
579
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org