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________________ भिक्षु-प्रतिमा मूलतः दो शब्दों से मिलकर बना है- भिक्षु + प्रतिमा। भिक्षु, अर्थात् भिन्न-भिन्न अभिग्रह करने वाला मुनि तथा प्रतिमा, अर्थात् ध्यानस्थ शरीर। जिस प्रकार प्रतिमा अचल होती है, उसी प्रकर साधना करने के समय मुनि भी शरीर से पूर्णतः स्थिर हो जाता है, अर्थात् प्रतिमा का स्वरूप धारण कर लेता है, अतः मुनि की इस स्थिति को भिक्षु-प्रतिमा कहते हैं। प्रतिमाओं का स्वरूप एक नहीं है। उनकी संख्या बारह है। इन प्रतिमाओं का पालन भिन्न-भिन्न अभिग्रहों के साथ किया जाता है, जिसका विवरण हर प्रतिमाओं के साथ प्रस्तुत किया जाएगा कि कौन-सी प्रतिमा कितने-कितने मास की है तथा किस-किस प्रकार के तप के साथ प्रतिमा की साधना की जाती है। इन प्रतिमाओं की साधना कठिन है। इन प्रतिमाओं में न केवल शरीर को ही साधना है, बल्कि मन को भी साधना है। मन को साधने पर ही सिद्धि की उपलब्धि होती है। सिद्धि को साधने के लिए मन को साधना और मन को साधने के लिए काया को साधना है और काया को साधने के लिए वचन को साधना है और वचन को साधने के लिए विचारों को साधना है और इन विचारों को साधने के लिए भिन्न-भिन्न अभिग्रहों, अर्थात् नियतिपूर्वक प्रतिमाओं को धारण करना होता है। ___भिक्षु–प्रतिमा-कल्पविधि का विवेचन करने के पूर्व आचार्य हरिभद्र भिक्षुप्रतिमा-कल्पविधि-पंचाशक की प्रथम गाथा में भगवान महावीर को नमस्कार करके भव्य जीवों के हित के लिए दशाश्रुतस्कंध-सूत्र के अनुसार भिक्षु-प्रतिमाओं के स्वरूप का संक्षेप में विवेचन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। प्रतिमा की संख्या और स्वरूप- आचार्य हरिभद्र भिक्षुप्रतिमा-कल्पविधि पंचाशक की दूसरी गाथा में18 प्रतिमाओं की संख्या एवं स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं 1 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 18/1 - पृ. - 313 318 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 18/2 - पृ. - 313 'पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 18/3 - पृ. -313 553 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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