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________________ स्वयं से अधिक या समान गुणों वाला न मिले, तो ऐसी परिस्थिति में एकाकी विहार करने का निर्देश है, परन्तु सामान्य मुनि के लिए ऐसी आज्ञा नहीं है, क्योंकि एकाकी विचरण करने वालों को संयम में दोष लगने की सम्भावना अधिक रहती है, जैसे- स्त्री सम्बन्धी दोष, कुत्तों आदि के द्वारा काटने का भय, साधु के प्रति द्वेष रखने वालों के द्वारा उपसर्ग, अशुद्ध भिक्षा आदि की प्राप्ति, अतः साधु को एकाकी विहार करना ही नहीं चाहिए। गीतार्थ को भी एकाकी विचरण की आज्ञा तब ही है, जब उसे कोई योग्य गीतार्थ न मिले, तो फिर अगीतार्थ को तो इसकी कैसे आज्ञा कैसे दी जा सकती है? आचार्य हरिभद्र का कथन है कि कृतज्ञ शिष्य सदा ही गुरु का सम्मान करता है, वह गुरु-सान्निध्य का त्याग नहीं करता है। जो ऐसा करता है, वह साधु नहीं है। वैसे साधुओं का सम्मान करना भी हितकर नहीं है। तीर्थंकर की आज्ञा में रहने वाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति का पालन करते हुए वसति, विहार, भाषा शुद्धि लक्षण से युक्त साधु ही अपने अच्छे आचार और विचार से अन्य भव्य जीवों में वैराग्य का बीज वपन कर सकता है और स्वयं शीघ्र शाश्वत सुख वाले सिद्ध-पद को, अर्थात् भवविरह को प्राप्त कर सकता है। द्वादश पंचाशक (साधु-सामाचारी-विधि) प्रस्तुत पंचाशक में आचार्य हरिभद्र ने साधु-सामाचारी-विधि का विवरण किया है। साधु-सामाचारी से तात्पर्य है- साधु-साध्वी के करने योग्य आचार-संहिता। साधु-साध्वियों को करने योग्य नियमों को दस विभागों में विभक्त किया गया है, जिसे दशविध सामाचारी अथवा दस यतिधर्म कहते हैं। दस सामाचारी निम्न हैं- 1. इच्छाकार-सामाचारी, 2. मिथ्याकार -सामाचारी 3. तथाकारसामाचारी 4. आवश्यकी-सामाचारी 5. निषीधिका-सामाचारी 6. आपृच्छना-सामाचारी 7. प्रतिपृच्छनासामाचारी 8. छन्दना-सामाचारी 9. निमंत्रणा-सामाचारी और 10. उपसम्पदा-सामाचारी। 1. इच्छाकार-सामाचारी - दूसरे साधुओं से अपना कार्य करवाने पर उनकी इच्छा को जानना तथा उनकी इच्छा होने पर उनका कार्य करना। 2. मिथ्याकार-सामाचारी - आचार-पालन में कहीं भी भूल हो गई हो, तो भूल को स्वीकार कर तुरन्त पश्चाताप करना। 3. तथाकार-सामाचारी - संयम से सम्पन्न- ऐसे सद्गुरु के वचन को यह कहते हुए स्वीकार करना कि 'आपने जो कहा, वह वैसा ही है।' 4. आवश्यिकी-सामाचारी - अवश्य करने योग्य कार्य आवश्यिकी है। संयम-रक्षा व पालन के लिए बाहर जाना अनिवार्य है, अतः उपाश्रय से बाहर जाते समय आवस्सही शब्द का प्रयोग करना। 5. निषीधिका-सामाचारी - आवश्यक कार्य पूर्ण कर उपाश्रय में प्रवेश करते समय निसिहि कहना। 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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